ठहराव
मेरी मोहब्बत के अंदाज का
तुम्हें अंदाजा भी नही था,
बस इश्क मिजाजी से
इश्क हकीकी तक जाना था।
हम कोट पहनकर..
ठंड से दूबके हुए जा रहे है।
वो मासूम कितना जिद्दी था..
माँ के आँचल में,
जाड़े की रात काटे जा रहा था।
लाइलाज होते है कई घाव
अपनों के धोखे
अपनों की खामोशियाँ।
किस्मत क्या होती है..
आज मुझें यकीन हो गया
एक बेबस माँ..
एक मासूम को जन्म दिया
फुटपाथ पर..।
एक कारवां आया था
मेरी आँखों के सामने से,
सब कुछ ले गया
सिर्फ मुझें छोड़ कर…।
– राहुलदेव गौतम