धैर्य का इम्तिहान
जब घर में झगड़े की चिंगारी,
अग्नि का रूप धारण कर लेती है,
तो उस वक़्त अवश्य ही,
हमारे धैर्य का इम्तिहान होता है,
हमने बड़ी-बड़ी डीग्रियाँ तो हासिल कर ली,
पर शिक्षा के ध्येय को,
समझने में नाकाम रहे,
हम अपने स्वार्थ में इतना डूब गए,
के घर बटवारे के तराजू में चढ़कर,
कब टुकड़ों में तकसीम हो गया,
पता ही न चला…!
कब भाई-भाई विद्रोही बन गए,
कब घर की सुख-समृद्धि को,
हवस का अजगर निगल गया,
पता ही न चला….!
मैं एक भाई के रूप में,
भाई को वचन देता हूँ,
के वर्चस्व की लड़ाई में,
सिर्फ मेरे हारने मात्र से,
यदि तुम्हें ख़ुशी मिलती है,
तो बेशक, मैं हारने के लिए तत्पर हूँ,
परन्तु, एक निवेदन है तुमसे,
हमारे आपसी द्वंद्व के कारण,
मानव धर्म के भावों को,
हृदय से निकलने मत देना,
सदैव स्मरण रखना कि,
वस्त्र के समान विचार बदल सकते हैं,
पर ख़ून का रिश्ता,
न कभी ख़त्म होता है,
न ही इस अटूट डोर पर,
किसी कैंची की हुकूमत चल सकती है,
सिर्फ कहने मात्र से ही,
कोई भाई शत्रु नहीं हो जाता,
कोई बहन बेगानी नहीं हो जाती,
और न ही माँ-बाप कभी पराए होते हैं… |”