नेता की कुर्सी

         नेता की कुर्सी


नेता की कुर्सी  ( भाग-१)
बढ़ई यहाँ कुर्सियाँ ठीक होने आईं
कुछ की उनमें हो गई लड़ाई,
कई ने दर्शक भूमिका निभाई
कुछ जज बन गईं भाई,
 नेता
पहली बोली -मुझसे दूर हटो
मुझें इज्जत और सम्मान दो,
मेरे मुकाबलें तुम कुछ नहीं
जहाँ हो रहोगी वहीं की वहीं,
दूसरी बोली-हमसें गुस्सा क्यों?
क्या घर से लड़कर आई हो?
हम पर क्रोध करना नहीं
हम भी किसी से कम नहीं,
पहली बोली-अकड़कर ऐसे
नेता हो ये ही जैसे,
जानती नहीं कौन हूँ मैं
अच्छा नही जो रूठ गई मैं,
दूसरी बोली-कुर्सी है कुर्सी तू
जैसी मैं हूँ वैसी तू,
तेरी किसी औकात को 
मैं ना मांनू इस बात को,
पहली बोली-मैं नेता की कुर्सी
तू है आम जन की कुर्सी,
मैं सत्ता पर काबिज़ हूँ
हर हक की वाजिब हूँ,
दूसरी बोली-कौन बड़ी बात है
कुर्सी तो बस कुर्सी है,
उस पर चाहे कोई बैठे
उसका सम्मान सबके नीचे,

नेता की कुर्सी  (भाग-२)

पहली बोली-नेता की प्यारी हूँ
उनकी बहुत दुलारी हूँ,
सारा काम मुझ पर ही करते 
छोड़ने भर से ही है डरते,
अपनों से ज्यादा मैं हूँ प्यारी
जिसकी मैं उसकी सत्ता सारी,
जो चाहूँ करवा सकती हूँ
चीटीं की भाँति मसल सकती हूँ,
दूसरी बोली-बहन,बात मैं समझी
सारी जड़ ये सत्ता है
जिसका भार तुझ पर रखा है,
भार जो यह उठ जाये
थोड़ी सदबुध्दि तुझे भी आये,
अब सुन मेरी कहानी
हाँ,कुर्सी की जुबानी,
जिस-जिस को तूने रूलाया
वो मुझ पर बैठ ही रोया,
तू बनी रही मालकिन सदा
मैंने मां का फर्ज निभाया,
तुझ पर युद्धों का भार है
तेरा एक इतिहास रहा है,
अस्तिव तो है मेरा भी
मैं ना होती तू होती कभी,
अब सुन अन्तिम बात
देना या ना देना साथ,
जहाँ जन्म से रही
वहीं मर जाती हूँ,
लोभ के कारणवश
दलबदल ना करती हूँ,
पहली बोली-आंसू भरकर
लोभ का जाला था आँखों पर,
कहाँ है आम आदमी का घर
जहाँ प्रेम मिलेगा जीवनभर,
मुझ पर ना युद्धों का भार होगा
मेरा भी सुन्दर इतिहास होगा,
                   

नाम – पूजा
रुचि-हिन्दी और बांग्ला साहित्य पढ़ना,लेखन कार्य
पता-बेहट,सहारनपुर(उत्तर प्रदेश)
शैक्षिक योग्यता- शिक्षा स्नातक और परास्नातक

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