वो बसंत कभी तो आएगा – मनीष कुमार पाठक “शंघर्ष” की कविता

महक उठे हर बगिया खुशबू से, वो वसंत कभी तो आएगा !
नव पल्लव फूटेंगे कोपल से
जग हरा भरा हो जायेगा !!
भाई के रक्त का प्यासाकोई भाई होगा ,
प्राण के लिए प्राणी कोई कसाई होगा ,
हो खवाबों का खून किसी के ,
वो स्वप्न कभी तो आएगा !

महक उठे हर बगिया खुशबु से ,
वो वसंत कभी तो आएगा . 
नव पल्लव फूटेंगे कोपल से जग हरा भरा हो जायेगा !!
न सड़कों पे कोई लाचार मिले  
सबको अपने हिस्से का अपना प्यार मिले 
जाति वर्ण का भेद मिटे , वो त्यौहार कभी तो आएगा 

महक उठे हर बगिया खुशबु से 
वो बसंत कभी तो आएगा ! 
नव पल्लव फूटेंगे कोपल से जग हरा भरा हो जायेगा !!
बहुत दुशासन आ गए गए धरा पर 
फिर बढ़ाने चीर किसी की , वो कृष्ण कभी तो आएगा !
महक उठे हर बगिया खुशबु से , वो बसंत कभी तो आएगा 
नव पल्लव फूटेंगे कोपल से 
जग हरा भरा हो जायेगा .!!





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