उम्मीद की लहर
इक उम्मीद की लहर
सागर बन जाती
रोम रोम में मेरे
गागर भर जाती
क्यों रूकुं
ये तूफान ही
हौसला बुलंद कर जाती
थम जाऊँ पल भर में
वो किस्सा नहीं
खास मैं खुद हूँ
मैं किसी का हिस्सा नहीं
फिर भी ढूंढते है
खुद को हर गली
एक बार ढूंढ तु खुद में
क्यों की तेरे जैसा कोई नहीं
मिट जाऊं
ऐसी कोई हस्ती नहीं
तूफानों से डर जाये
ऐसी कोई कश्ती नहीं
पंखों से उड़ान तो
महज एक वहम है
हो गर होसलों की उड़ान
ये भी क्या
किसी उम्मीद से कम है
– मेघना वीरवाल
गाडरियावास, आकोला
चित्तौड़गढ़, राजस्थान