अपनत्व की भाषा – हिंदी

अपनत्व की भाषा – हिंदी

  
हिंदी हैं हम , वतन हैं , हिन्दोस्तां हमारा यह  धुन हमने अपने जीवन में कई बार गुनगुनाई होगी|जब भी हम ये गाना गाते हैं तब ‘हिंदी हैं हम’ पर विशेष ज़ोर देते हैं और हमें अपनापन महसूस होता है | 
श्री कमलापति त्रिपाठी ने कहा है – “हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है |” यह कथन सौ प्रतिशत सही है | सचमुच हिंदी और भारतीय संस्कृति को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता | जहाँ भारतीय संस्कृति है , वहाँ हिंदी भाषा का होना अवश्यम्भावी है |
14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को राजभाषा के पद पर आसीन किया गया | तभी से हम हर वर्ष इस दिन को ‘हिंदी दिवस’  के रूप में मनाते हैं | ये दिन हम हिंदी प्रेमियों के लिए एक त्योहार है | हिंदी भाषा ने पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधकर रखा हुआ है | हमारे देश में हिंदी भाषा को अधिकांशत: लोग बोलते और समझते हैं | यही कारण है कि जब राष्ट्र को एक भाषा की आवश्यकता अनुभव हुई तब हिंदी के अतिरिक्त किसी और भाषा को
अपनत्व की भाषा – हिंदी

यह उत्तरदायित्व देने का विचार ही नहीं आया | इतिहास साक्षी है कि जब हमारा देश दासता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था तब क्रांति की विचारधारा पूरे देश में फ़ैलाने का कार्य हिंदी ने ही किया था | ओजस्वी लेख, प्रेरणादायी भाषणों , कविताओं , समाचार-पत्रों ने जन-मानस के हृदय तंत्री को झंकृत किया और देश के प्रति कर्तव्यबोध कराया | हिंदी भाषा ‘आज़ादी की भाषा’ कही जाने लगी | इससे स्पष्ट है कि हिंदी राष्ट्रीय संपर्क की भाषा है | हिंदी में बातचीत करना , व्यवहार करना आसान है क्योंकि यह एक जीवित भाषा है | समय-समय पर इसमें नवीन शब्द आते रहते हैं , पता नहीं कितनी भाषाओं के शब्दों को इसने अपने अंदर समाहित कर लिया है | यही इसकी जीवंतता का प्रमाण है | हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने हिंदी को ‘बहता नीर’ कहा है | हिंदी सीखना और व्यवहार में लाना अन्य भाषाओं की अपेक्षा ज्यादा सुविधाजनक और आसान है। इसके साथ  ही यह लोक भाषा की विशेषताओं से संपन्न है, बड़े पैमाने पर लोचदार भी है, जिससे वह दूसरी भाषाओं में शब्दों, वाक्य-संरचना और बोलचालजन्य आग्रहों को स्वीकार करने में समर्थ है। इसके अलावा  हिंदी में आज विभिन्न भारतीय भाषाओं का साहित्य लाया जा चुका है । विभिन्न भारतीय भाषाओं के लेखकों को हिंदी के पाठक जानते हैं , उनके बारे में जानते हैं । भारत की भाषायी विविधता के बीच भी हिंदी ही मुख्य भाषा है ।

साम्राज्यवाद ने भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में परोक्ष भूमिका निभाई | अट्ठारहवी तथा उन्नीसवीं सदी में भारत से बड़ी तादाद में मजदूर दूसरे देशों में ले जाए गए । जिसके फलस्वरूप मारिशस, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, के अन्य कई देश, ब्रिटिश गायना, त्रिनिडाड, सूरीनाम, न्यूजीलैंड आदि देशों में जो बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग हैं, वे मुख्यत: हिंदीभाषी हैं अथवा यह कहें कि वे हिंदी जानते हैं, हिंदी पढ़ते-लिखते हैं। नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार (वर्मा) में तो स्वभावत: हिंदी भाषी जनता की संख्या बहुत बड़ी हैं | आधुनिक युग में नई संचार-व्यवस्था, आवागमन के नए साधनों की उपलब्धता और जीवन की नई जरूरतों से प्रेरित होकर इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, रूस और यूरोप के अन्य अनेक देशों में भी भारत से जा बसे लोगों में हिंदी भाषी लोग आज रह रहे हैं। हिंदीभाषियों को अथवा हिंदी जानने वालों की यह विशाल संख्या हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय संपर्क का साक्षात्कार कराती है। संख्या की दृष्टि से हिंदी दुनिया की तीन बड़ी भाषाओं में एक है, शेष दो हैं अंग्रेजी और चीनी।
आज भले ही हमारे देश में अंग्रेज़ी का बोलबाला हो लेकिन बात जब प्यार और अपनत्व की आती है तो लोग हिंदी में बात करते हैं | दबदबा दिखाना हो तो भले ही अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हों पर प्यार-मनुहार के लिए वे हिंदी में ही बात करते हैं | एक माँ जब अपने बच्चे को लाड़ दिखाती है तो हिंदी में ही स्वाभाविक वार्तालाप करती है | कहीं बाहर जाते हैं तो जब भी व्यकिगत भावनाओं की बात आती है तो हिंदी स्वत : ही मुँह पर आ जाती है उसके लिए कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता | भले ही बड़ी-बड़ी योजनाएँ अंग्रेजी में बनाईं जातीं हों मगर जब जनता की बात आती है तो हिंदी में ही बात-चीत होती है | हिंदी फिल्मों की महत्ता भी कम नहीं है | हिंदी फिल्मों और संगीत का जादू तो पूरी दुनिया के सिर चढ़ कर बोलता है | तभी तो हिंदी प्रेमियों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ रही है | इस बात का अनुमान सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के सबसे बड़े सर्च इंजन ने हिंदी की महत्ता को स्वीकार करते हुए हिंदी के लिए विशेष सॉफ्टवेयर बनाया तथा अपनी सारी  जानकारी हिंदी में भी उपलब्ध करवा रखी है |
जय हिंदी,जय भारत |
– इलाश्री जायसवाल 
नोएडा 
मो – 9911542580    

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