सरस्वती पूजा

सरस्वती पूजा
माँ सरस्वती ज्ञान व कला की  देवी हैं . इन्हें भारती , शारदा , वाणी , वीणापाणी , गिरा , महाश्वेता आदि अनेक
माँ सरस्वती 

नामों से पुकारा जाता है . इनका वाहन हंस है . ये स्वेत वस्त्र धारण की हुई हैं . इनके चरणों के नीचे कमल है . इनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरे हाथ में पुस्तक है . इनकी पूजा माघ की शुक्ल पंचमी के दिन होती है . इस पंचमी को ‘वसंत पंचमी ‘ भी कहते हैं . यह पूजा विशेष तौर से विद्यार्थी वर्ग ही करता है . स्कूल , कॉलेज , पुस्तकालय , क्लब एवं हास्टलों में सरस्वती की पूजा बड़ी ही धूम – धाम से होती है .

पूजा का आयोजन
माँ सरस्वती के पूजा के एक सप्ताह पहले से ही पूजा मंडप बनने लगता है . नाट्य , अभिनय , नृत्य आदि के लिए अभ्यास तो महीने पहले से होता है . पूजा के दिन सुबह से रात तक कुछ न कुछ आयोजन होता ही रहता है . 
सरस्वती पूजा विधि : 
वसंत पंचमी के दिन विद्यार्थी सुबह से ही स्नान कर नया वस्त्र पहनते हैं . इस दिन विशेष कर लड़के धोती एवं लडकियाँ वसंती साड़ी पहनती हैं . पूजा स्थल पर देवी की प्रतिमा फूलों से और भी सुन्दर हो जाती है . छात्र – छात्राएँ अपनी कलम , पुस्तकें माँ के चरणों में रखते हैं . पूजा के अंत में पुष्पांजलि होती हैं . सभी लड़के अपने हाथ में फूल लेकर माता की पूजा करते हैं . और उनकी वंदना करते हैं . संध्या समय आरती की जाती हैं . 
आमोद – प्रमोद :
बच्चे संध्या – समय संगीत एवं अभिनय के द्वारा आमोद – प्रमोद करते हैं . कभी – कभी बाहर के भी पेशेवर कलाकारों को बुलाया जाता है . 
प्रतिमा – विसर्जन :
पूजा के दूसरे दिन प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है . नगरों तथा उपनगरों में विसर्जन का दृश्य देखते ही बनता है . जब माता की मूर्ति सड़कों से होकर गुजरती है तब लड़के सड़कों पर नाचते गाते एवं ‘सरस्वती माता की जय ‘ के नारे लगाते हुए चलते हैं . अंत में किसी नदी या तालाब में प्रतिमा का विसर्जन होता है . 
उपसंहार :
सरस्वती पूजा प्रेरणादायक पर्व है . इस पूजा के बाद ही विद्यालयों में पढ़ाई प्रारंभ होती है . यह विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रेरणा का पर्व है . 

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