हुई कौन सी तेरी विदाई

हुई कौन सी तेरी विदाई 

कैसी हुई है आज ,
तिरंगे में तेरी बिदाई ,
आँसूवों के दामन में, 
बजी कौन सी शहनाई ।।
कैसे तुझे करू मैं बिदा ,
ना उतरा है अबतक चूडा, 
ना हो पाया तुझसे मिलना ,
रह गया आधा अधूरा सपना ।।
अरमानों के डोली में सजकर ,
हुई कौन सी तेरी विदाई

आया था तुम मूझे लेने ,

खूशियों संग तू झूमा था, 
सुकून कितना लाया था ।।
अभी तो हुँ मैं कितनी अनजानी ,
निशानी ना कोई जानी पहचानी, 
वाकिब भी अभी नहीं मैं ,
दरोदिवारों के ठिकाणों से ।।
अभी तो रिश्तों में है झिझक ,
चूल्हे से आती ना मेरी खणक, 
चाय में कितनी लगती शक्कर ,
यहीं सोच आती मुझे चक्कर ।।
तुम काम पे निकल गये ऐसे, 
बिदाई की बेला तेरी हो जैसे ,
उतरी नहीं अब भी मेरे, 
हाथों पे जो रंगी थी हिना ।।
होता रहता है मुझे रहम, 
तुम मेरे गमों का मरहम ,
वादा किया था ना तुमने ,
सातों जन्म साथ चलने का ।।
अकेले कहाँ निकल गये तुम ,
लौटके वापस ना आना हुँवा 
क्या कहके समझाऊ उन्हें  ,
अपने जो मेरे पिछे खडे  ।।
रूकते नहीं आँसू जिनके ,
कितने मैं पौछ लु गिनके  ,
कैसै कोई उनको रोके, 
हो गये जो तिनके तिनके ।।
माँ – बाबा का तुम इंतजार , 
बहन का डोली में होना सवार, 
भाई के लिए ढे़र सारा प्यार, 
मेरा तो रहा अधूरा ही दिदार ।।
क्या कहके मना लु गम को ,
जो आया ना संभलना खुद को, 
कैसे बनू मैं किसीकी ढाल, 
जो खुद ही हुँ मैं अब बेहाल ।।
ये कैसी रित है आई ,
तेरी ही आर्थी सजाई ,
कभी ना लौटने के लिए ,
हुँवी कौनसी तेरी बिदाई  ।।
इस जन्म तो गये छोड ,
पुकार लु अगर मैं किसी मोड ,
उम्मीद एक पल तुम ही होना, 
देखो कभी मुझे हारने ना देना  ।।
  

– कु.जयश्री पद्माकर कुलकर्णी
अहमदनगर

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