वीर की पहचान

वीर की पहचान

किसी गाँव में रंगी नाम का एक कुम्हार रहता था .एक बार वह तेज़ी से भागा जा रहा था .उसकी धोती का पल्लू किसी लकड़ी में फंसकर रह गया ,जिसके कारण वह बहुत जोर के साथ धरती पर आ गिरा .जैसे ही वह धरती पर गिरा ,वहां एक ईंट का टुकड़ा उसके माथे में चुभ गया .उसके लगते ही उसके माथे से खून का फव्वारा फूट पड़ा .
युद्ध
युद्ध
जख्म तो कुछ दिनों में भर गया .मगर उसका दाग सदा के लिए माथे पर पक्का बन गया .वह दाग दूर से ही नज़र आता था .हर कोई उस कुम्हार के दाग का मज़ाक भी उड़ाता था . 
कुछ समय के पश्चात उस देश में भयंकर अकाल पड़ गया जिसके कारण लोग अपने अपने घरों को छोड़कर दूसरे शहरों की ओर भागने लगे थे .इसके साथ ही यह कुम्हार भी गाँव छोड़कर शहर चला गया और जाकर राजा की सेना में भर्ती हो गया .
एक बार राजा ने जैसे ही उस कुम्हार के माथे पर जख्म के दाग को देखा तो उसने समझा यह किसी युद्ध में लगी तलवार के घाव के निशान है .इससे यह स्पष्ट होता है कि यह आदमी बहुत बहादुर योद्धा है . 
कुछ ही दिनों के पश्चात राजा ने अपने वीरों की शक्ति परीक्षा के लिए नकली युद्ध का प्रबंध करवाया तो उसमें उस कुम्हार सैनिक को राजा ने विशेष रूप से बुलाया .
राजा ने उसे अपने पास बुलाकर पूछा – क्यों नौजवान ! तुम्हारे माथे पर जो घाव है वह किस युद्ध में आया था ?”
सीधा – सादा कुम्हार बेचारा हेराफेरी का काम क्या जाने .उस बेचारे से सच बोलते हुए माथे पर लगी चोट की सारी कहानी सुना और साफ़ कह दिया – महाराज ,मैं तो जाती का कुम्हार हूँ ,मैं भला युद्ध में लड़ना क्या जानू .”
राजा ने जैसे ही कुम्हार की बात सुनी तो उसको बहुत क्रोध आया ,उसने कुम्हार को जोर से धक्का देते हुए कहा – 
“हरामखोर ,धोखेबाज ,जा निकल जा मेरे दरबार से .मैं ऐसी घटिया आदमी की शक्ल भी नहीं देखना चाहता .”
कुम्हार हाथ जोड़कर राजा से बोला – “महाराज ,आखिर मुझमे किस चीज़ की कमी है ? देखो मैं कितना लम्बा – चौड़ा ,सेहतमंद जवान हूँ . अकेला ही पांच दस को ठिकाने लगा सकता हूँ . “
“मगर तुम्हारी जाती का काम लड़ना नहीं हैं .जिसका जो काम होता है ,वही उसे शोभा देता है .हर सेहतमंद जवान वीर नहीं बन जाता .वीरता वंश से मिलती है . 

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