कौन सुनेगा मेरे बाद

कौन सुनेगा मेरे बाद


तो तुम्हें भी रास नहीं आया
मेरा आजाद होना,
अस्तित्वहीन बंधन के डोर से।
कुछ सच भी तो नहीं था,
तुम्हारे हलचल आँखों के कोर से।
तो मैं कैसे बधां रहता,
अस्तित्वहीन बंधन के डोर से।
लोगों की तरह तुम्हें भी
कर्णप्रिय नहीं थे,

कौन सुनेगा मेरे बाद

मेरे शब्दों के अर्थ।
तुम्हें प्रिय भी नहीं थे,
मेरे सिद्धान्तों के शर्त।
कुछ सम्बल भी नहीं थे,
तुम्हारे हाथों के जोर से।
तो मैं कैसे बधां रहता,
अस्तित्वहीन बंधन के डोर से।
समय की तरह तुम्हें भी
मंजूर नहीं थे,
मेरे खामोशियों के जज्बात।
तुम्हें पसंद भी नहीं थे,
मेरा वक्त ए हालात।
तुमनें आवाज भी दिया तो जमानें के शोर से।
तो मैं कैसे बधां रहता,
अस्तित्वहीन बंधन के डोर से।
कुछ बचा भी नहीं है मेरे पास,
मेरे शोषित भावनाओं को छोड़कर
अब कौन होगा?
तुम्हारे शोषण का हकदार,
मुझें पाबंध छोड़कर।
अब कैसे गर्वित होगे?
किसपे फैसला सुनाकर।
कौन सुनेगा मेरे बाद,
चुपचाप गरदन झुकाकर।
कुछ कहा भी तो तुमनें,
चिलमनों के छोर से।
तो मैं कैसे बधां रहता,
अस्तित्वहीन बंधन के डोर से।
क्या अब भी कुछ बाकी है,
तुम्हारे शोषण के कोश मे?
मैं अब भी सहने को तैयार हूं
हशो-हवाश में।
अब कुछ भी नहीं बचा
तुम्हारे रिश्ते कमजोर से।
तो मैं कैसे बधां रहता,
अस्तित्वहीन बंधन के डोर से।

                   

 —  राहुलदेव गौतम

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