उपन्यास – ग़बन लेखक- प्रेमचंद |
जिंदगी की वह उम्र, जब इंसान को मुहब्बत की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, बचपन है। उस वक्त पौधे को तरी मिल जाये, तो जिंदगी भर के लिए उसकी जड़े मजबूत हो जाती हैं। यह
कहा जाता है कि बचपन से ही जो बात मन में बैठ जाए वह शायद जिंदगी भर नहीं
उतरता तो भला कहानी की नायिका जलपा गहनों के प्रेम से खुद को कैसे वंचित कर
सकती थी जिसने आभूषणों से ही खेलते–खेलते बचपन बिताया हो। कहानी गबन में गहनों के प्रति अत्यावश्यक लगाव किस तरह बड़ी–बड़ी समस्याओं का यह पढ़ना बड़ा ही दिलचस्प है कारण बनता है। कहानी के नायक रमानाथ व जलपा के अलावा रत्नादेवी, देवीदीन खाटी, मुंशी दायनाथ, जग्गो, इांपेक्टर खान, मुंशी दीनदयाल, गंगाराम, पब्लिक प्रासिक्यूटर, रमेश जैसे अहम किरदार हैं।
भाषा ने बढ़ाई कहानी की शान
कहानी के कुछ अंश
महाशय दीनदयाल प्रयाग के एक छोटे से गाँव में रहते थे। वह थे जमींदार के मुख्तार। गाँव पर उन्हीं की धाक थी। वेतन कुल पाँच रूपये पाते थे, जो उनके तम्बाकू के खर्च को भी काफी न होता था। जालपा उन्हीं की लड़की थी। पहले उसके तीन भाई और थे; पर इस समय वह अकेली थी। उससे कोई पूछता–तेरे भाई क्या हुए, तो वह बड़ी सरलता से कहती–बड़ी दूर खेलने गये हैं। दीनदयाल जब कभी प्रयाग जाते, तो जालपा के लिए कोई–न–कोई आभूषण जरूर लाते। उनकी व्यावहारिक बुद्धि में यह विचार ही न आता था कि जालपा किसी और चीज से सकती है अधिक प्रसन्न हो। गुड़ियाँ और खिलौने वह व्यर्थ समझते थे; इसलिए जालपा आभूषणों से ही खेलती थी। यही उसके खिलौने थे। वह बिल्लौर का हार, जो उसने बिसाती से लिया था, अब उसका सबसे प्यारा खिलौना था.असली हार की अभिलाषा अभी उसके मन में उदय ही नहीं हुई थी। गाँव में कोई उत्सव होता, या कोई त्योहार पड़ता तो, वह उसी हार को पहनती। जलपा का विवाह दयानाथ के बेटे रमानाथ से तय होता है। रमानाथ फिलहाल बेरोजगार है इसीलिए दयानाथ शादी नहीं कराना चाहते। उनके पास न रुपये थे और एक नये परिवार का भार उठाने की हिम्मत; पर रामेश्वरी ने त्रिया–हठ से काम लिया और इस शक्ति के सामने पुरुष को झुकना पड़ा। दोनों का विवाह हुआ। जलपा अपने ससुराल से चंद्रहार न आने के कारण बहुत दुखी थी जेसे संसार में चंद्रहार से बड़ा उसके नहीं कुछ लिए। फिर भी उसके लिए उधार के गहने आए जिसमें चंद्रहार न होने के कारण जलपा को संतुष्टि नहीं होती। रमानाथ
को नौकरी तो मिलती है लेकिन उसकी हैसियत से ज्यादा दिखाने के शौक तथा जलपा
के गहनों की चाह ने उसे उधार पर जीने को मजबूर कर दिया था। एक बार वह अपने कार्यालय से पैसे लाया लेकिन जलपा उसे गलती से रत्ना देवी को दे दिया। भय
और दुविधा में घिरा रमानाथ घर छोड़ कर चला जाता है क्योंकि उसने कार्यालय
के पैसे गबन कर लिए हैं लेकिन जलपा को सच्चाई का पता नहीं। तो क्या सचाई जानने के बाद जलपा रमानाथ को रिश्ता तोड़ देती है? क्या रमानाथ घर लौटता है? क्या गबन का मामला कोर्ट तक पहुंच जाता है? यह तो आपको कहानी पढ़ने से ही पता चल पाएगा।
इतिश्री सिंह |
यह समीक्षा इतिश्री सिंह राठौर जी द्वारा लिखी गयी है . वर्तमान में आप हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री जी ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. इतिश्री अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.