अपमान भरे तेरे शब्दों की
शक्ति है अनमोल
जो तिरस्कार ने की
क्या करते मीठे बोल
कभी गालियों में भी शक्ति होगी
मैं था इससे अनजान
इश्वर को शायद ज्ञात ये था
दी एक मुह और दो कान
ये शब्द तुम्हारे थे तीखे
जो करते दिल पे वार
अहंकार व्यंजन है वो
जो मन का प्रिय आहार
तुम ही हो मेरे जामवंत
जिसने था मुझे जगाया
आज हूँ मैं जिस मक़ाम पर
उन शब्दों ने पहुँचाया
स्वीकार करो गुरुवर मेरे
मौन भरा अभिनन्दन
कीचड़ जो उछाला मुझ पर
वो बन गए शीतल चन्दन
मैं खुश हूँ आँखों में आँसू
देख न तुम घबराना
आये हो आशीर्वाद मुझे
नए गालियों में दे जाना ………