माँ का आंचल बहुत याद आया

बहुत खूबसूरत शहर मे भी रहके

योगेश पाण्डेय

मेरा गॉव मुझको बहुत याद आया
बहुत ही हँसी है यहां का ये मौसम
मगर माँ का आंचल बहुत याद आया

पहन के उतारन,बिताया है बचपन
अभावों मे अब तक,गुजारा है जीवन
जरूरत मेरी पूरी करने की खातिर
माँ का संघर्ष करना बहुत याद आया
बहुत ही हँसी है यहां का ये मौसम
मगर माँ का आंचल बहुत याद आया

वो चिमटे की खन-खन,वो चौकी वो बेलन
वो थोड़ा-सा गुस्सा,वो थोड़ी-सी अनबन
वो खेतों मे जाना,वो बोझा उठाना
वो मुझको पढ़ाना बहुत याद आया
बहुत ही हँसी है यहां का ये मौसम
मगर माँ का आंचल बहुत याद आया

वो गलियां वो राहें ,वो प्यारी-सी बांहें
वो मुझको उठाना,वो झूला झुलाना
वो रोटी बनाना,वो खाना पकाना
वो जगाकर खिलाना बहुत याद आया
बहुत ही हँसी है यहां का ये मौसम
मगर माँ का आंचल बहुत याद आया

वो नदिया का पानी,वो पुरवा सुहानी
वो गर्मी का मौसम,वो छुट्टी का आलम
वो बचकानी बातें,वो प्यारी-सी रातें
वो खटिया उठाना,वो बाहर बिछाना
माँ से पानी मगाना बहुत याद आया
बहुत ही हँसी है यहां का ये मौसम
मगर माँ का आंचल बहुत याद आया

यह रचना योगेश पाण्डेय जी द्वारा लिखी गयी है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है . संपर्क सूत्र – फोन नं.- 07060756956 , ई-मेल: ypandey9@gmail.com

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