इब्ने इंशा की कहानी – कछुआ और खरगोश

एक था कछुआ। एक था खरगोश। दोनों ने आपस में शर्त लगाई। कोई कछुए से पूछे कि तूने शर्त क्यों लगाई ? क्या सोचकर लगाई ?

बहरहाल , तय यह हुआ कि जो पहले नीम वाले टीले पर पहुंचेगा , उसे हक होगा कि दूसरे के कान काट ले। दौड़ शुरू हुई तो कछुआ रह गया और खरगोश तो यह जा कि वह जा। कछुआ अपनी परंपरागत रफ्तार से चलता रहा। कुछ देर चला तो ख्याल आया कि थोड़ा आराम कर लिया जाए , बहुत चल लिए। आराम करते करते नींद आ गई।
न जाने कितना जमाना सोते रहे। आंख खुली तो सुस्ती बाकी थी। बोले अभी क्या जल्दी है। इस खरगोश के बच्चे की क्या औकात कि मुझसे जीत सके। वाह भाई वाह , मेरे क्या कहने।
काफी जमाना सुस्ता लिए तो फिर मंजिल की तरफ चल पड़े। वहां पहुंचे तो देखा खरगोश न था। बेहद खुश हुए। अपनी मुस्तैदी की दाद देने लगे। इतने में उनकी नजर खरगोश के एक पिल्ले पर पड़ी। उससे खरगोश के बारे में पूछने लगे।
खरगोश का बच्चा बोला जनाब वह मेरे वालिद साहब थे और मुद्दतों आपका इंतजार करने के बाद मर गए और वसीयत कर गए कि कछुए मियां यहां आ जाएं तो उनके कान काट लेना। लिहाजा लाइए इधर कान…
कछुए ने फौरन कान और अपना सिर खोल के अंदर कर लिया और आज तक छिपाए फिरता है।

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