बरगद वाली डायन

बरगद वाली डायन

गाँव से हाई स्कुल का रास्ता करीब 2 किलोमीटर लम्बा होगा पर गाँव में न तो उस वक्त कोई स्कुल जाने की सुविधा थी न ही कोई दुसरा चारा…तो ये पैदल का सफर आम सा था…निर्मला हाईस्कुल में सबसे टॉपर स्टूडेंट थी हर बार क्लास टॉप लाने का रिकॉर्ड बनाया था उसने …पर दिल से बड़ी कमजोर थी भुत प्रेत के नाम से ही उसकी घिग्घी बन्ध सी जाती थी और दुसरों के बने बनाए कहानियों में विश्वास कर लेती थी ..यही कारण था की वो
डायन

स्कुल टॉपर होने के बावजूद भी सभी के नरजो में मजाक की पात्रा बनी हुई थी उसकी एक चचेरी बहन उसी की क्लास में थी जो पढ़ने में ठीक तो थी कभी भुत प्रेत से कभी भी नही डरती और न ही उन बातों पर विश्वास करती पर पढ़ाई में वो निर्मला जितनी नही टॉपर थी कई बार निर्मला के स्थान प्राप्त करने की कोशिस की …पढाई भी की ..और इस बात का सुषमा को हमेशा से मलाल रहता और वो निर्मला से चिढ़ी-चिढ़ी सी रहती और जब भी कोई शिक्षक निर्मला की तारीफ करते हुए कहते की पढ़ने का हुनर कोई निर्मला से सीखो …तो जल भून सी जाती और वो उस चिढ का सारा कसर अब उसकी कमजोरियों पर निकालने लगी उसका उपहास उड़ाती और निर्मला उसकी बातों को नजरअंदाज करती रहती वो जानती थी वो डर के कारण से स्कुल से घर अकेली नही जा सकती वजह घर और स्कूल के रास्ते में पड़ने वाला बुढा विशाल बरगद का घना वृक्ष …जिसकी गाँव में हजारों कहानियाँ चर्चित थी …कोई कहता भूतों का निवास स्थान है कोई कहता सिरकटे जिन्न रहते है तो कोई कहता की इस वृक्ष के जड़ के निचे चुड़ैलों का वास् है जो दोपहर के में और रात में वेश बदल कर लोगो का शिकार करती रहती हैं और उसी बरगद के बगल में एक टूटी सी झोपडी है जिसकी अलग एक कहानी उस घर में रहने वाली वृद्ध महिला एक डायन है और वो बरगद पर जितने भी भुत प्रेत हैं सभी की माँ है और वो डायन उनके लिये छोटे या बड़े बच्चों का बलि देती है। और भी कई कहानियाँ लोगों से सुनी सुनाई निर्मला इसी डर से सुषमा की हर अपमान को सह लेती और सुषमा रोज रास्ते में एक नित् नए झूठी भुत की कहानियों का गढ़न सूना देती …घर में दोनों साथ पढाई करती और एक साथ ही रहती पर सुषमा उसे किसी न किसी बहाने उसे पीछे करना चाहती टेस्ट पेपर का समय आने वाला था निर्मला और सुषमा दोनों तैयारियाँ सुरु कर दी तभी सुषमा ने एक नया  योजना बनाया अब वो आधीरात मे निर्मला को जगाकर डरने का ड्रामा करते हुए बोली देख निर्मला आज के बाद तेरे साथ नही सोऊँगी क्योकि अभी मैं तेरे सर के किनारे किसी सफेद साड़ी वाली महिला को देखि हूँ वो तेरे को घूर रही थी और फिर अचानक गायब हो गई शायद कोई चुड़ैल हो ..और सुषमा उस दिन के बाद निर्मला के पास नही सोई और इधर सुषमा का योजना सफल हो चुका था अब निर्मला को बेड पर सचमुच में भुत नजर आने लगे और अँधेरे में डर लगने लगा …वो अब अपने परछाई से भी डरने लगी थी …निर्मला का डर इतना घर कर गया दिल और दिमाग में की वो सूखने सी लगी और चेहरे पिले से पड़ने लगे…पढ़ाई भी जाती रही।

टेस्ट पेपर हुआ तो रिजल्ट इस बार विपरीत था निर्मला इस बार छठे स्थान पर थी और टेस्ट की टॉपर सुषमा …सुषमा को मानो पूरी जहाँ की खुशियां मिल गई थी अब वो अपनी युक्ति से इतनी प्रसन्न हुई की दो चार बातें और बढा चढ़ा कर अपनी सहेलियों को बता दी की  निर्मला के साथ ये ये काम किया।
स्कुल के प्रिंसपल त्रिवेणी बाबू को अभी भी विश्वास नही हो पा रहा था की निर्मला ऐसे मार्क्स ला सकती है ..री पेपर चेक हुए पर वास्तिवकता तो यही थी की निर्मला इस बार 6ठे नम्बर पर थी रिजल्ट में…..त्रिवेणी बाबु निर्मला के माता पिता को स्कुल में बुलाया और रिजल्ट से अबगत कराया फिर निर्मला के विषय में पूछे की घर में कोई कलह या द्वेश तो नही है जिससे इसकी ये हालत हुई है।उनके माता पिता ने इन बातो से इंकार किया हाँ वो निर्मला के नए हाव भाव से विचलित जरूर थे ..अब त्रिवेणी बाबू क्लास के सहपाठी लड़कियों से निर्मला के बारे में जानने की सुभी वो तो किसी छात्रा ने निर्मला और सुषमा की द्वेश की कहानी जाहिर कर दी …अब सब कुछ साफ साफ सा था अब त्रिवेणी बाबु सब कुछ सही कर देने का आश्वासन दे निर्मला के पैरेन्ट को विदा किये और दोपहर स्कुल की छुट्टी के वक्त निर्मला और सुषमा दोनों को क्लास में बुलाया ….सुषमा पुरे स्कुल में सिर्फ त्रिवेंणी बाबु से ही डरती थी इसी लिए डर से गेट के किनारे स्थिर थीं और निर्मला आज्ञा ले अंदर आगई …त्रिवेणी बाबु अपने कुर्सी से उठ निर्मला के पास आये और उसके सर पर हाँथ फिराते हुए बोले -देखो निर्मला तुम एक ऐसे डर की शिकारग्रस्त हो जो की दुनियॉ में कहीँ भी नही है …सभी एक मनगढ़ंत कहानियाँ है जो पीठी दर पीढ़ी  चली आरही जिसका कोई वजूद नही …फिर कुछ रुक कर त्रिवेणी बाबु सुषमा की तरफ मुड़े और चिल्लाए …सुषम्ना भाग …तुम्हारे पीछे काला नाग साँप है……. सुषमा चीखती हुई दो फलांग में निर्मला के पीछे आकर छुप गई और आँखे  डर के मारे मूंद ली
त्रिवेणी बाबु हंस पड़े बोले कोई सांप नही है सुषमा आँखे खोलो ये तो महज एक एक्जाम्पल था  की जिस तरह मेरे झूठ और मनगढ़ंत साँप की कहानी के डर से बगैर पीछे देखे आगे आकर आँखें बन्द करके छुप गई यही से भुत प्रेत की कहानियों में भी है.. लोग अपने फायदे के लिए तरह तरह की कहानियाँ बना देते है  और उस डर को कायम रखने के लिए हमेशा नया तड़का डालते है ताकि लोग डरे और उस डॉ के निवारण के एवज में मोटा फायदा कमाया जाय….जिस त सुषमा को क़ाला नाग का भय से डराया …उसी तरह उसे मैं अजगर सांप बोल कर डरा सकता था
उसी तरह कोई भुत तो कोई प्रेत या चुड़ैल बोल कर भोले भाले लोगो के दिलों में डर बसाते है …अब तुम सुषमा से ही पूछो की क्या वो अपने फायदा के लिये तुम्हारे पीछे मनगढ़ंत भुत नही छोड़ी है …त्रिवेणी बाबु जब कड़क कर सुषमा से पूछे तो वो सारी बाते बता दी जिसके डर के साये में अब तक निर्मला जीती आरही थी।तब प्रिंसपल साहब ने दुबारा से ऐसी गलती न करने की सख्त हिदायत देकर सुषमा को जाने को कहा और निर्मला से बोले अब बोलो निर्मला चलो आज मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे गाँव के तरफ चल रहा हूँ । किसी से मिलने जाना है बहुत दिनों से गया नही ..त्रिवेणी बाबु की बातों का असर साफ दिखने लगा था निर्मला के स्वभाव से उसके चेहरे से डर के बादल छटते दिख रहे थे..रास्ते का बरगद अब समीप था और उस वृक्ष के  करीब सौ मीटर की दुरी पर त्रिवेणी बाबु रुक कर बोले निर्मला बोलो क्या ये पेड़ तुम्हे अभी भी खूंखार दिखता है ..निर्मला ने नही में अपने सिर को हिलाया तो त्रिवेणी बाबु बोले तुम्हारी यही बात को सच तब मानूँगा जब तुम उस पेड़ के पास यहाँ से अकेले जाकर छूकर उससे कहो की- मै अब तुमसे नही डरती वो डर मेरी भूल थी …और ये शब्द इतने जोर से कहना की वो आवाज यहाँ भी सुनाई पड़े । निर्मला स्वीकृति में सिर हिलाकर अपने कदमों को बढ़ा दी और पेड़ के तना के समीप पहुँच गई नजरे उठा कर देखि …धना छायादार वृक्ष है जिनकी शाखाओं पर चिडियो के छोटे छोटे घोसले है जिनमे चूचू की आवाजें आरही थी डालियों पर किटकिट करते गिलहरी फुदक रहे थे और इस पेड़ की निचे काफी मवेशी छाया में विश्राम कर रहे थे। आह्ह्ह कितना मनोरम छाया है ये पेड़ तो आँचल है छाँव का और इसे मैं भूतों का घर मान बैठी तभी पीछे से त्रिवेणी बाबू बोले क्या हुआ अभी भी डर रही हो क्या …चिल्लाई क्यों नही अब तक जो बोला था। निर्मला बोली -माफ़ करें सर मेरे चिल्लाने से  पँछी जीवों और मवेशियों के विश्राम में खलल पड़ता तो नही चिल्ला सकी पर आज मैं अपने दिल का डर और इस बट वृक्ष के लिये दिल में पनपे कड़वाहट के लिये मन ही मन पछता रही हूँ ….कई बार प्रार्थना करती थी की आंधी आये और पेड़ गिर जाये …आसमान से बिजली गिरे और पेड़ जल कर ठूठ हो जाये
कभी नही सुझा की क्या गलत विचार थे मेरे ..कितने जीवों को घर से बेघर करने की प्रार्थना करती रही।
त्रिवेणी बाबु मुस्कुरा रहे थे अब बोले चलो धुप की वजह से प्यास भी लगी है तो सामने की झोपडी में पानी पी लिया जाये । निर्मला चौक पड़ी -बोली सर भुत नही होते ये जान गए पर डायन तो होती है तभी तो उस बूढी औरत को प्रमाण सहित गाँव से बहिस्कृत करके निकाला है।त्रिवेणी बाबु थोड़े खामोश से हो गए बोले – तुम्हे पता है निर्मला औरत जैसी सबल कोई नही ..दया किसी में नही..और अकेली औरत जैसी निर्बल भी कोई नही…जिसका कोई नही रहता उस औरत पर दुनिया वालो की गन्दी नजर बनी रहती है फिर कुछ तानाशाह लोग  उसके तन ..मन और धन तीनो के हनन करने के फिराक में रहते हैं और अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए कोई भी इल्जाम मढ़ देते है ताकि उसके बाद उस महिला पर कुछ भी अत्याचार किया जा सके …तानाशाह लोगो के बोले शब्द ही भोली भाली जनता के लिये प्रमाण होता है …फिर भी मुझपे विश्वास है तो तुम आओ मेरे साथ …निर्मला कुछ बोली नही बस पीछे हो ली ।
दरवाजे की चबूतरे पर एक पुराणी सी खाट पर एक बूढी महिला पड़ी हुई थी जो की आहट सुन उठ बैठी और बोली -आओ बेटा आओ पर आज दोपहर में कैसे आये और अभी तो मेरा राशन पानी खत्म भी नही हुआ है । निर्मला समझ गई की प्रिंसपल सर यहाँ आते रहते हैं और इनकी मदद भी करते हैं।त्रिवेणी बाबु बोले -आज अपने स्कुल की सबसे अच्छी छात्रा को आपकी आशीर्वाद दिलवाने लाया हूँ ..बस इसे ऐसा आशीर्वाद दीजिये की फाइनल पेपर में मेरे स्कुल का नाम रौशन कर किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला ले।उस वृद्धा के चेहरे पर झुर्रियों के बीच प्रेम और अकेलापन का पीड़ा साफ नजर आरहा था ..निर्मला झट उनके चरणों में झुक गई और वो वृद्धा उसे गले लगाकर बोली बेटी क्या तुझे इस बुढ़िया डायन से भय नही लगता …अब उस वृद्धा के आँखो में प्रेम भरे आँशु थे जो निर्मला के मन के डर और इसके प्रति कितने मैल पनपे थे सब धो दिए। वापस लौटने वक्त वृद्धा ढेरों आशीर्वाद एक साथ निर्मला पर लूटा दी और निर्मला भी डेली स्कुल से लौटते वक्त वृद्धा से मिलकर जाने का वादा कर आई …निर्मला घर की ओर राह पकड़ने से पहले मुडकर त्रिवेणी बाबू के तरफ मुड़ी और बोली सर आज मैं वाकई जान गई की ये बूढ़ा बरगद और वृद्धा का आँचल दोनों एक समान है …ये दोनों किसी का कभी नुकसान नही पहुंचा सकते और हम कितने गलत थे की सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर के दिल में भय और विकार पैदा कर लिए …और निर्मला त्रिवेणी बाबू से लिपट गई त्रिवेणी बाबु की अब पानी की प्यास शायद बुझ चुकी थी वो निर्मला के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले …नारी कभी कमजोर नही होती बस दिल में हौसला होना चाहिए। जबतक डरोगी ये दुनियां कई तरह से डराएंगी और सताएगी ….बस एक बार डर को छोड़कर …हिम्मत पैदा करना सीखो…..
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– विकाश शुक्ला

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