मन में मधुमास आ गया
मेरे उर अन्तस्थल को , जब से स्नेह मिला है तेरा ।
पतझड़ से नीरस मन में मधुमास आ गया ।
बिखर रहीं थीं मन की लड़ियाँ ,
तुमनें उन्हें पिरो डाली ।
जिससे पहुँचूं स्नेह लक्ष्य तक ,
पथ आलोकित कर डाली ।।
अब जीवन लय संगीत बनेगा , मन में यह विश्वास आ गया ।।1।। पतझड़…..
रूप प्रभा की ज्वाला प्रेयसि ,
मन में इस तरह फैल रही है ।
जैसे गीत ज्ञान की गंगा में ,
कविता अविरल तैर रही है ।।
जो बिखर चला था जीवन में , वह सब मेरे पास आ गया ।।2।। पतझड़…….
हृदय प्रदेश के खाली पन में ,
यादों के पौध लगा डाली ।
उर्वरक डाल कर संवादों की ,
कलियों को कुसुम बना डाली ।।
इस उपवन के सुगन्ध से , मेरे छन्दों में अनुप्रास आ गया ।।3।। पतझड़…….
चाँदनी सुशोभित मस्तक प्रेयसि ,
नयनों में प्रश्न घूमते सारे ।
जगमगा रहे हैं नव यौवन में ,
तेरे सूरज चाँद सितारे ।।
सपनों की छाया मे अरी सुनयने ! , अब तेरा आकाश आ गया ।।4।।
पतझड़ से मन में मधुमास आ गया