गोदान उपन्यास में मालती का चरित्र चित्रण

गोदान उपन्यास में मालती का चरित्र चित्रण

गोदान उपन्यास में मालती का चरित्र चित्रण  गोदान के नारी पात्र गोदान में स्त्री पात्र का चरित्र चित्रण मालती पात्र है मालती का चरित्र चित्रण गोदान प्रेमचंद मालती का चरित्र godan novel malti godan novel malti characters in hindi – उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द नारी को सदैव त्याग, मंगल और पवित्रता की अधिष्ठात्री देवी के रूप में मानते थे। इसी प्रेरणा के वशीभूत होकर अपने ‘गोदान’ में उन्होंने मालती का चरित्र उज्जवल रूप में चित्रित किया है। मालती का चरित्र न केवल स्त्री-पात्रों में वरन् पुरुष पात्रों में भी अधिक विकासमान है। मालती का चरित्र बडा ही आकर्षक और रहस्यात्मक है कि पाठक उपन्यास के प्रारम्भ से अन्त तक उसे जिज्ञासु की भाँति बडे कौतुहल से देखता रहता है। जहाँ प्रारम्भ में वह घृणा की पात्र बनती है वहीं बाद में वह पाठकों की श्रद्धा का पात्र बन जाती है। ‘गोदान’ में उसकी निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताएँ उभरकर हमारे सामने आती हैं –  

सौम्य व्यक्तित्व

मालती कमल की भाँति खिली, दीपक की भाँति प्रकाशवती, स्फूर्ति एवं उल्लास की प्रतिमा तथा नि:शंक सौम्य व्यक्तित्व वाली स्त्री है। उसे यह पूर्ण विश्वास है कि संसार में उसके लिये आदर और सुख का द्वार सर्वथा खुला हुआ है। वह इंग्लैण्ड से डॉक्टरी पास करके आयी है और लखनऊ में अपनी प्रैक्टिस करती है। भारतीय संस्कार तो उसमें कूट-कूट के भरे हुए हैं। वहीं वह एक विचारशील स्त्री है। विदेशी तड़क-भड़क तो उसका ऊपरी मुलम्मा प्रतीत होता है। प्रेमचन्द की दृष्टि में उसका स्वरूप आधुनिक ‘सोसाइटी गर्ल’ की समता रखता है। उसके वाह्य व्यवहार से तो ऐसा प्रतीत होता है कि वह किसी की भी अंकशायिनी बनने को उद्यत रहती हो परन्तु उसकी सौम्यता उसकी नारी सहज दृढ़ता को पूर्णरूप से स्पष्ट कर देती है।उसे सम्पूर्ण वाह्य प्रदर्शन केवल अपनी विषम परिस्थितियों द्वारा उत्पन्न समस्याओं के निराकरण के लिए ही करने पड़ते हैं। स्वयं प्रेमचन्द जी भी उसके सम्बन्ध में कहते हैं- “मालती बाहर से तितली है भीतर से मधुमक्खी।” उसका यही व्यक्तित्व उसकी विवशताओं का अनुचित लाभ उठाने की अभिलाषा वालों को अपना जहरीला दंश मारकर दूर भगाने की पूर्ण सामर्थ्य रखता है। 

परिवार के प्रति समर्पण 

 मालती का चरित्र चित्रण
 मालती का चरित्र चित्रण
मालती अपने परिवार के प्रति पूर्णरूप से समर्पित है। वह अपनी सीमित आय से अपने परिवार का जीवनयापन करती है। उसके अपाहिज माता-पिता – बिगडे रईसों की आदतों से ग्रसित हैं। उन्हें मांस-मदिरा के बिना भोजन भी नहीं रुचता। अपनी दोनों बहनों सरोज और वरदा की शिक्षा का भार भी उसे वहन करना पड़ता है। उन सभी के जीवन और उज्जवल भविष्य की कामना के लिए वह अपना विवाह करके अपने में ही सीमित रहना नहीं चाहती। वह तन, मन, धन से अपने परिवार की मर्यादा की रक्षा के लिए सजग रहती है। इसके साथ ही वह क्षणभर के लिए अपना मन भी बहला लेती है। डॉ. मेहता के सम्पर्क में आने पर उसमें जिन गुणों का समावेश होता है वह तो उसके पारिवारिक विरासत में उसे मिले थे। अपने जीवन के बोझिल मन को थोड़ा-सा आनन्द प्रदान करने के लिए वह अपनी मित्र मण्डली में थोडा-सा चंचल और रसिक बन जाती है। खन्ना, डॉ. मेहता, रायसाहब, मिर्जा खुर्शीद, तंखा आदि उसके मित्र हैं। खन्ना तो उसके प्रति अधिक अनुरक्त प्रतीत होता है, परन्तु मालती इस प्रकार के लोगों के प्रति बहुत सजग है क्योंकि वह भली-भाँति जानती है कि ऐसे व्यक्ति केवल स्त्री के रूप में भोग की लालसा रखने वाले ही होते हैं। 

वीरता की उपासक 

यद्यपि पठान के वेश में मेहता उसे उठा ले जाने की धमकी देते हैं और वह सभ्य समाज के पुरुषों को देखकर एक बार तो तिलमिला उठती है। साथ ही वह यह भी  देखती है कि खन्ना आदि उसे एक पठान से बचाने में असमर्थ रहते हैं तो मालती अपना साहस नहीं छोड़ती। वह उठा ले जाने की धमकी से आतंकित नहीं होती। वह पठान के पौरुष से ओत-प्रोत हो जाती है। नारी वीरता की उपासक होती है। अत: वह भी ऐसे वीर पुरुष के शक्तिशाली रूप को देखकर उसके प्रति समर्पित हो उठने की नारी सुलभ आकांक्षा से अपने हृदय में सिहरन का अनुभव करने लगती है। 


पौरुष के प्रति आकर्षण

मालती सच्चे पौरुष के प्रति आकर्षित होने वाली नारी है।वह प्राचीन नारी का आधुनिक संस्करण है। उसका जीवन पौरुष के खेलों में ही व्यतीत हुआ है। उसका यह आकर्षण मेहता के पठान वेश में प्रदर्शित पौरुष उसे उसकी ओर आकर्षित कर देता है। मालती अपने अन्य पुरुष मित्रों के खोखलेपन को भली-भाँति जानती है। यही कारण है कि वह उन्हें सदैव उल्लू बनाया करती है। इसमें उसे कोई सन्तोष या तृप्ति प्राप्त नहीं होती। उसका नारीत्व तो एक दृढ़ और स्थायी आश्रय चाहता है। मेहता में उसे अपना वह आश्रय दिखायी देता है। वह उसके प्रति आकर्षित भी होती है परन्तु मेहता उसके बाह्य रूप को ही उसका वास्तविक रूप मानते हैं। यही कारण है कि वह उसकी अवहेलना करते हैं। मेहता उसके प्रेम में पूर्ण समर्पण की आकांक्षा करते हैं। वह स्वयं बर्बर प्रेम के पक्षधर हैं इसीलिए वह बिना शर्त आत्मसमर्पण चाहते हैं। वह मालती में अपनी जीवन-संगिनी के सर्वगुण नहीं देखते इसी कारण वह उसकी उपेक्षा भी करते हैं। मालती फिर भी उनके प्रति आकर्षित बनी रहती है। 

उदारता

मालती का हृदय उदार है। मेहता के द्वारा उपेक्षित होने पर भी वह उसके प्रति अपनी उदारता को नहीं छोड़ती। मेहता भी उसकी वृत्ति को आखिर समझ ही लेते हैं। उनका मन सहज ही मालती की ओर आकर्षित होने लगता है। मालती में भी परिवर्तन होने लगता है और वह उसके प्रभाव से सेवा-वृत्ति को अपनाने लगती है। अब वह गरीबों की उपेक्षा नहीं करती। वह मेहता को अपना आदर्श मानने लगती है और त्याग और सेवा को अपने जीवन में अपनाने लगती है, परन्तु उसे विलास से विरक्ति हो उठती है। मालती झुनियाँ के बच्चे की माँ के समान सेवा करती है।गाँव की स्त्रियों को, जोकि त्याग और श्रद्धा की जीवित देवियाँ है, उनके समक्ष वह अपने आपको तुच्छ समझती है।मेहता में अब भी उसकी उतनी ही अनुरक्ति है परन्तु सेवा-भाव से वह गम्भीर हो जाती है।वह मेहता की अनियमितताओं में सुधार लाने के लिये उन्हें अपने बंगले पर ले जाती है और उनकी पूरी देखभाल भी करती है परन्तु एकान्त में मिलने का अवसर नहीं देती।उसकी उदारता मेहता को उसका अनुरागी बना देती है। 

दूरदर्शिता

मेहता उपास्य से उसके उपासक बन जाते हैं और उसके देवी रूप में लीन हो जाना चाहते हैं परन्तु मालती यह भली-भाँति जानती है कि मन के मोह में आसक्त होते ही मेहता की मानवता का क्षेत्र संकुचित हो जायेगा और उनकी सम्पूर्ण शक्ति नयी-नयी जिम्मेदारियों को परा करने में ही व्यय होने लगेगी।ऐसी स्थिति में वह त्याग और सेवा के कार्य पूर्ण नहीं कर पायेंगे। इसीलिये मालती उनसे स्पष्ट शब्दों में अपने मन की बात को कह देती है- “तुम्हारे जैसे विचारवान, प्रतिभाशाली मनुष्य की आत्मा को मैं इस कारागार में बन्द नहीं करना चाहती।” इस प्रकार उसकी दूरदर्शिता से डॉ. मेहता का एक नया जन्म होता है और वह मालती के समक्ष अपना. आत्मसमर्पण करते हुए कह उठते हैं “तुम्हारा आदेश स्वीकार है मालती।” 

वीतरागी आदर्श समाजसेविका

मालती जो कि लुभाने और रिझाने की कला में निपुण है आगे चलकर हाव-भाव निपुण अर्वाचीन नारी से वीतरागी समाज सेविका बन जाती है। उसके शील का यह परिवर्तन एक छोर से दूसरे छोर तक की सहज यात्रा करता है। मालती में आये  परिवर्तन का प्रभाव स्वयं मेहता की आत्मा को भी छू गया है।वह स्वयं अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं- “मालती नारीत्व के उस ऊँचे आदर्श पर पहुँच गयी थी,जहाँ वह प्रकाश के एक नक्षत्र-सी नजर आती थी। अब वह प्रेम की वस्तु नहीं, श्रद्धा की वस्तु थी।अब वह दुर्लभ हो गयी थी और दुर्लभता मनस्वी आत्माओं के लिये उद्योग मन्त्र है।” वास्तव में वह अपना सर्वस्व न्यौछावर करके बस समाज-सेवा में लीन हो जाती है।अब उसका प्रेम, त्याग सभी कुछ सेवा में ही निहित रहता है।इसी को वह अपना आदर्श मानती है।वह जानती है कि मन के मोह में आसक्त होते ही उसकी मानवता का क्षेत्र संकुचित हो सकता है। अत: वह इस ओर अग्रसर नहीं होती। 
वास्तव में प्रेमचन्द जी ने ‘गोदान’ में मालती की दृढ़ता के द्वारा मेहता के भौतिकतावाद पर आत्मा की विजय को प्रदर्शित किया है। मालती प्रेमचन्द की एक ऐसी अनुपम कृति है कि उनके कला-कौशल को देख मुग्ध रह जाना पड़ता है। उपन्यास में मालती के चरित्र का विकास आरम्भ से अन्त तक गुप्त रूप से होता रहता है। ऊपर से तितली के समान आकर्षित करने वाली नारी वास्तव में हृदय से संस्कारों से पूर्ण है। जब वह डॉ. मेहता के साहचर्य में आती है तो उसका यही संस्कार उसके बाह्य रूप को दबाकर ऊपर उभर आते हैं। यही आगे चलकर उसके मधुमक्खी स्वरूप को सार्थकता प्रदान करते हैं। खन्ना आदि के संसर्ग में रहते हुए भी वह सर्वथा अछूती ही बनी रहती है। मालती में विलासिता की कलुषता का आरोप लगाया जा सकता है, परन्तु यदि वह ऐसी विलासिनी होती तो क्या वह मेहता जैसे पुरुष को पाकर भी उसे अपने निकट न आने देती। वह अपनी दृढ़ता के बल पर ही मेहता को दूर हटा देती है। 
मालती का संयम, दृढ़ता, प्रबल इच्छाशक्ति एवं मननशीलता उसके चरित्र की आधारशिला है। यही कारण है कि स्वयं उपन्यासकार का यह कथन मालती के चरित्र पर सार्थक सिद्ध होता है कि वह बाहर से तितली और भीतर से मधुमक्खी है।

प्रेमचन्द का आदर्शवाद

सारांशतः हम कह सकते हैं कि मालती के चित्रांकन में प्रेमचन्द जी का आदर्शवादी स्वरूप : स्पष्ट रूप से मुखर हो उठा है। वह सदैव नारी को त्याग, मंगल और पवित्रता की देवी मानते थे। यही कारण है कि अपनी इसी प्रेरणा से प्रेरित होकर उन्होंने ‘गोदान’ में मालती का इतना उज्जवल चरित्र प्रदर्शित किया है। श्री जितेन्द्रनाथ पाठक के यह शब्द इसी सार्थकता को और भी बल प्रदान करते हैं- “कुल मिलाकर मालती और मेहता में प्रेमचन्द का आदर्शवाद मूर्त हुआ है।” 

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