नाथूराम की गोलियों से नहीं मरा था मोहनदास

उस दिन नाथूराम की गोलियों से
नहीं मरा था मोहन दास .
उसे मारा दंगाइयों की बर्बरता ने,
धर्म के नाम पर मासूमों का कत्ल करने वाले,
गर्दनमारों की धृष्टता ने.
उसे मारा शिक्षक के वहशीपन ने,
तीन साल की गुड़िया की अस्मत लूटने के बाद,
खुद को ईश्वर तुल्य बताने वाले के जंगलीपन ने.
उसे मारा उसी के आदर्शो को मानने वाले गांधीवादियों ने,

इतिश्री सिंह राठौर 

जिन्होंने अनशन के नाम पर सड़क पर कराया रक्तपात,
फिर भी कहते रहे चलो हाथ से हाथ मिला कर हाथ.
पल-पल भले ही हजार मौतें मरता रहा वह,
फिर भी  कुछ सांसे बाकी थी उसमें,
लेकिन कब मोहनदास ने पूरी तरह दम तोड़ा
जानते हैं ?
जब उसकी प्रतिमा पर फूलों का हार चढ़ाया ,
आपने-हमने,
दो अक्टूबर को.

यह रचना इतिश्री सिंह राठौर जी द्वारा लिखी गयी है . वर्तमान में आप हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री जी ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. इतिश्री अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.

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