वीर
है हजारों वीर लेकिन, वीर है बस नाम के,
जो दे न पाए सम्मान इनको,वे लोग हैं किस काम के।
जो रातभर जागते रहे,उस वीर को दीज्यो दुआ,
सूर्य से सर्वश्रेष्ठ है वो, वीर है तो क्या हुआ।।
वीर |
वक्त आने पर मिला ले, हाथ जो अंधियार से,
संबंध जिनका कुछ नहीं है,सूर्य के परिवार से।
देखता वीर पाक को, खुद में जैसे जाँकता है,
फुट पड़ता मन का ज्वाला,बेहद थर-थराता है।।
एक वीर जागते रहा,और सब अविचल रहो,
क्या विकट संग्राम है,युद्धरत प्रतिपल रहो।
हाय में भी एक सैनिक,जूजता अँधियार से,
धन्य कर दूँगा धरा को,ज्योति के उपहार से।।
यह धड़ी बिलकुल नहीं है,शांत और संतोष की,
दो गज धरा टुकडी जो होगी,पाक तेरे कोष की।
यह धरा के मामले में,घनघोर काली रात है,
कौन जिम्मेवार इसमें,यह सभी को ज्ञात है।।
ये देश वीरों को स्नेह देकर,खुद चैन से सो जायेगा,
सपन आँखों में जो भरकर,आराम से खो जायेगा।
रातभर लड़ता रहे वीर,है घनघोर अब अंधियार से,
है रातभर विचलित रहेगा,मौसम की मार से।।
फिर भी जानता है वीर लेकिन,
दुनिया सवेरे मांग कुछ ऐसा भरेगी।
जान मेरी जायेगी ,
ऋण अदा नेताओं करेगी।।
आज मेंने चाँद से बस जरा सा यूँ कहा,
आपके साम्राज्य में इतना अंधेरा क्यों रहा।
बादलो से निकल कर चाँद बोला, में अकेला क्या करू,
इन निकम्मों के लिये ही,में भला कब तक मरूँ।।
वीरों समझा दो जरा,पाक को कुछ ऐसा सबक,
संग्राम यह घनघोर है, कुछ तुम लड़ो कुछ में लडूँ।।
– भूपेन्द्र प्रभाकर
नागनाथ पोखरी के सलना गाँव, जिला -चमोली ,उत्तराखंड
शिक्षा -स्नातक, सम्प्रति -भारतीय सेना में कार्यरत ,
पहली पुस्तक -कश्मीर से आने वाले,