चुपचाप निहारते बरगद
साफ़
उन खेतों में
आज भी
नजर आ रहीं
घासें लहराती हरी
जैसे बुनकर स्वेटर
माँ ने
मेरे लिए
रख दिया हो
सजाकर
जमीन पर I
सूर्य देव प्रशन्न
मेहरवान
किरणें चमकीली
फैला रहे
इर्द गिर्द I
खामोश अनेकों लताएँ
पकड़े खड़ीं
पेड़ों को
जैसे डरा दी हों
किसी ने
किन्तु इधर समेटे
होंठ
बदन भी
चुपचाप निहारते
बरगद घने I
यह रचना अशोक बाबू माहौर जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है . आप लेखन की विभिन्न विधाओं में संलग्न हैं . संपर्क सूत्र –ग्राम – कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)476111 , ईमेल-ashokbabu.mahour@gmail.
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