तीन गुना बुद्धिमान

तीन गुना बुद्धिमान 

एक दिन बादशाह अकबर के दरबार में मनोविनोद का दौर चल रहा था – दरबारी ठिठोली करके प्रसन्न हो रहे थे।किसी दरबारी को ठिठोली सूझी और उसने बीरबल को टोक दिया – “जब खुदा रंग बाँट रहा था तो आप कहाँ रह गए थे बीरबल साहब।”
अन्य दरबारी हंसने लगे।बादशाह भी हँसे बगैर न रह सके। बादशाह सहित सभी दरबारी गोरे रंग के थे ,उन सब में बीरबल का ही रंग काला था। 
दरबारियों को लगा आज बीरबल की हेठी अवश्य होकर रहेगी – बादशाह भी पूछ बैठे – हाँ ,हाँ ,बीरबल बताओ ,जब खूबसूरती बंट रही थी तुम कहाँ रह गए थे ?”
दरबारी आशा कर रहे थे कि बीरबल कहेंगे – मेरी बदसूरती में मेरा क्या दोष ,माँ बाप और संस्कार इसकी वजह हैं।  
अकबर बीरबल
अकबर बीरबल 
पर बीरबल ,बीरबल थे। उन्होंने बाअदब खड़े होकर कुछ दूसरी ही बात कही। बोले – जहाँपनाह ,गुस्ताखी माफ़ हो – ऊपर वाका सिर्फ खूबसूरती ही नहीं बाँट रहा था ,बल्कि खूबसूरती के साथ साथ तीन चीज़ें और भी बांट रहा था ,वह थी दौलत ,अक्ल और ताकत। मेरा नंबर जब आया तो मैं अक्ल यानी बुद्धि लेने उस ओर बागा जहाँ वह बंट रही थी और लोग जहाँ एक एक मुट्ठी में ही तसल्ली करके दौलत ,ताकत और खूबसूरती लेने के लिए दौड़ लगा रहे थे ,ऐसे समय में मैं चार मुट्ठी अक्ल के लिए वहां ठहर गया था – बस बुद्धि के चक्कर में खूबसूरती ,दौलत और ताकत पाने से पीछे रह गया था। 
बादशाह खिलखिला कर हँसे – बीरबल ने बेहद चतुराई से न सिर्फ उन सबकी खूबसूरती का ही बल्कि दौलत और ताकत का भी मज़ाक उड़ा डाला था। खुद को अन्य से तीन गुना बुद्धिमान साबित करके विरोधियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। 

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