एक कुत्ता और एक मैना – हजारी प्रसाद द्विवेदी

एक कुत्ता और एक मैना हजारी प्रसाद द्विवेदी

एक कुत्ता और एक मैना कक्षा 9 ek kutta aur ek maina summary ek kutta ek maina एक कुत्ता और एक मैना के प्रश्न उत्तर एक कुत्ता और एक मैना कौन सी विधा है एक कुत्ता और एक मैना Explanation Ek kutta aur Ek maina   Ek Kutta Aur Ek Maina  Question Answer of Ek Kutta Aur Ek Maina  Acharya Hazari Prasad Dwivedi एक कुत्ता और एक मैना Class 9  Complete Summary Explanation Ek kutta aur ek Maina  Hazari Prasad Dwivedi Hindi  NCERT  Kshitij  class- 9 gurudev ne shantiniketan ko chod kahin aur rahane ka man kyon banaya एक कुत्ता और एक मैना पाठ का सारांश गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया वह एक कुत्ता है इन इंग्लिश प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए लेखक ने मैना को कैसा पक्षी समझ रखा था एक कुत्ता और एक मैना पाठ का सारांश ek kutta or ek maina path ka sar 

एक कुत्ता और एक मैना पाठ का सारांश

एक कुत्ता और एक मैना पाठ या निबंध लेखक हज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी के द्वारा लिखित है | इस निबंध में पशु-पक्षियों और मानव के बीच प्रेम, भक्ति, विनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का प्रस्फुटन हुआ है | प्रस्तुत निबंध में कवि ‘रवीन्द्रनाथ’ की कविताओं और उनसे जुड़ी यादों के माध्यम से उनकी संवेदनशीलता और सहजता का चित्रण किया गया है | लेखक के अनुसार, कई वर्ष पहले गुरुदेव शांतिनिकेतन को छोड़कर कहीं और जाने को इच्छुक थे | उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था | इसलिए वे श्रीनिकेतन के पुराने तिमंज़िले मकान में कुछ दिनों तक रहे | वे सबसे ऊपर के तल्ले में रहने लगे | 
छुट्टियों के दौरान आश्रम के अधिकतर लोग बाहर चले गए थे | एकदिन लेखक अपने परिवार के साथ गुरुदेव रविन्द्रनाथ से मिलने श्रीनिकेतन जा पहुँचे | गुरुदेव वहाँ अकेले रहते थे | शांतिनिकेतन की अपेक्षा श्रीनिकेतन में भीड़-भाड़ कम होती थी | लेखक और उसके परिवार को देखकर गुरुदेव मुस्कुराते हुए उनका हाल पूछे | ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के समीप खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा | गुरुदेव कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे खूब स्नेह दिए | तत्पश्चात्, गुरुदेव ने लेखक को संबोधित करते हुए कहा — ” देखा तुमने, यह आ गए | आखिर मालूम चल गया इन्हें कि मैं यहाँ हूँ ! और देखो कितनी परितृप्ति इनके चेहरे पर झलक रही है…|” 
आगे लेखक कहते हैं कि वाकई, गुरुदेव से मिलकर उस कुत्ते को जो आनन्द की अनुभूति हुई थी, वह देखने
हजारी प्रसाद द्विवेदी
हजारी प्रसाद द्विवेदी

लायक थी | किसी ने उस बेज़बान जानवर को रास्ता नहीं दिखाया था और न ही बताया था कि उसके स्नेह-दाता उससे दो मील दूर रहते हैं, फिर भी वह गुरुदेव के पास पहुँच गया था | गुरुदेव ने इसी कुत्ते को लक्ष्य करके उसके प्रति कविता के माध्यम से अपना प्रेम और स्नेह भाव भी जताया था | उस कविता में कवि रवीन्द्रनाथ ने अपनी मर्मभेदी दृष्टि से इस भाषाहीन प्राणी की करूण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता | लेखक के अनुसार, जब गुरुदेव का चिताभस्म आश्रम लाया गया, तब उस समय भी वो कुत्ता आश्रम तक पहुँचा था और गम्भीर अवस्था में चिताभस्म के पास कुछ देर खड़ा रहा |

लेखक गुरुदेव से संबंधित किसी घटना को स्मरण करते हुए कहते हैं कि मैं उन दिनों शांतिनिकेतन में नया ही आया था | गुरुदेव सुबह-सुबह अपने बगीचे में टहलने निकला करते थे | एकदिन मैं भी एक पुराने अध्यापक के साथ सुबह बगीचे में गुरुदेव के साथ टहलने निकल गया | गुरुदेव बगीचे के फूल-पत्तियों को ध्यान से देखते हुए और उक्त अध्यापक से बातें करते हुए टहल रहे थे | मैं चुपचाप उन दोनों की बातें सुनता जा रहा था | गुरुदेव अध्यापक महोदय से पूछ रहे थे कि बहुत दिनों से आश्रम में ‘कौए ‘ दिखाई नहीं दे रहे हैं, जिसका जवाब वहाँ किसी के पास नहीं था | आगे लेखक कहते हैं कि अचानक मुझे उस दिन पता चला कि अच्छे आदमी भी कभी-कभी प्रवास चले जाने पर मजबूर होते हैं | अंतत: एक सप्ताह के बाद वहाँ बहुत सारे कौए दिखाई दिए | 
लेखक अपना एक और अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि एक रोज सुबह मैं गुरुदेव के पास उपस्थित था | उस समय आस-पास एक लंगड़ी मैना फुदक रही थी | तभी गुरुदेव ने कहा — ” देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है | यहाँ आकर रोज फुदकती है | मुझे इसकी चाल में एक करुण भाव दिखाई देता है…|” लेखक कहते हैं कि यदि उस दिन गुरुदेव नहीं कहे होते तो मुझे मैंना का करूण भाव दिखाई ही नहीं दे पाता | जब गुरुदेव की बात पर मैंने ध्यानपूर्वक देखा तो मालूम हुआ कि सचमुच ही उसके मुख पर करूण-भाव झलक रहा है | आगे लेखक मैना के बारे में कहते हैं कि शायद यह विधुर पति था, जो पिछली स्वयंवर-सभा के युद्ध में आहत और परास्त हो गया था | या फिर हो सकता है कि विधवा पत्नी हो, जो पिछले किसी आक्रमण के समय पति को खोकर अकेली रह गई हो | शायद, बाद में इसी मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने एक मार्मिक कविता लिखी थी | लेखक कहते हैं कि जब मैं उस कविता को पढ़ता हूँ, तो उस मैना की करूणामय तस्वीर मेरे सामने आ जाती है | वे खुद पर अफ़सोस जताते हुए कहते हैं कि कैसे मैंने उसे देखकर भी नहीं देख पाया और कैसे कवि रवीन्द्रनाथ की आँखें उस बिचारी के मर्मस्थल तक पहुँच गई | 
एकदिन वह मैना उड़ गई | जब सांयकाल को कवि ने उसे नहीं देखा, तो उन्हें बहुत अफ़सोस हुआ और कहने लगे “कितना करूण है उसका गायब हो जाना…!! 

एक कुत्ता और एक मैना के प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-1 गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया ?

उत्तर- गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था | वे कुछ दिन एकांत में विश्राम करके स्वास्थ्य लाभ लेना चाहते थे | इसलिए गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन बनाया और श्रीनिकेतन चले गए | 
प्रश्न-2 मूक प्राणी भी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर-  मूक प्राणी भी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते |  पाठ के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं से यह कथन स्पष्ट होता है — 
• गुरुदेव से मिलकर उस कुत्ते को जो आनन्द की अनुभूति हुई थी, वह देखने लायक थी | किसी ने उस बेज़बान जानवर को रास्ता नहीं दिखाया था और न ही बताया था कि उसके स्नेह-दाता उससे दो मील दूर रहते हैं, फिर भी वह गुरुदेव के पास पहुँच गया था |
• लेखक के अनुसार, जब गुरुदेव का चिताभस्म आश्रम लाया गया, तब उस समय भी वो कुत्ता आश्रम तक पहुँचा था और गम्भीर अवस्था में चिताभस्म के पास कुछ देर तक बैठा रहा | 
प्रश्न-3 गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया ?

उत्तर- जब गुरुदेव की बात पर लेखक ने ध्यानपूर्वक मैना को देखा, तो मालूम हुआ कि सचमुच ही उसके मुख पर करूण-भाव झलक रहा है | तब जाकर गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक समझ पाया | 
प्रश्न-4 आशय स्पष्ट कीजिए –

“इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करूण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता |”

उत्तर- कवि रवीन्द्रनाथ जी ने जब कुत्ते को अपने स्नेह भरे हाथों से स्पर्श किया, तो कुत्ते ने भी आँखें बंद करके उस स्नेह को महसूस किया | मानो उसके अतृप्त मन को गुरुदेव के स्पर्श से तृप्ति मिल गई हो | इस प्रकार कवि ने अपनी मर्मभेदी दृष्टि से उस भाषाहीन प्राणी की करूण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को पहचान लिया था | 
आज मानव अपने स्वयं के जीवन में इतना व्यस्त हो गया है कि वह एक-दूसरे की भावनाओं को समझने में असफल है | जबकि कवि रवीन्दनाथ जी ने एक मूक पशु की आंतरिक भावनाओं का महसूस करने में सफल हो गए | 
प्रश्न-5 भाषा-अध्ययन – 

• गुरुदेव ज़रा मुस्कुरा दिए | 
• मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ | 

ऊपर दिए गए वाक्यों में एक वाक्य में अकर्मक क्रिया है और दूसरे में सकर्मक | इस पाठ को ध्यान से पढ़कर सकर्मक और अकर्मक क्रिया वाले चार-चार वाक्य छाँटिए | 

उत्तर – सकर्मक और अकर्मक क्रिया वाले चार-चार वाक्य – 
सकर्मक क्रिया — 
• आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गए थे | 
• गुरुदेव ने इस भाव की एक कविता लिखी थी | 
• घास पर उछल-कूद रही है | 
• जिसमें वह अपनी दीनता बताता रहता है | 
अकर्मक क्रिया — 
• गुरुदेव वहाँ बड़े आनन्द में थे | 
• मैं चुपचाप सुनता जा रहा था | 
• एक लँगड़ी मैना फुदक रही थी | 
• मैं सवेरे गुरुदेव के पास उपस्थित था | 
प्रश्न-6 निम्नलिखित वाक्यों में कर्म के आधार पर क्रिया-भेद बताइए — 

(क)- मीना कहानी सुनाती है | 
(ख)- अभिनव सो रहा है | 
(ग)- गाय घास खाती है | 
(घ)- मोहन ने भाई को गेंद दी | 
(ड)- लड़कियाँ रोने लगीं | 

उत्तर-  कर्म के आधार पर क्रिया-भेद – 
(क)- सकर्मक क्रिया
(ख)- अकर्मक क्रिया
(ग)- सकर्मक क्रिया
(घ)- सकर्मक क्रिया
(ड.)- अकर्मक क्रिया | 
प्रश्न-7 नीचे पाठ में से शब्द-युग्मों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं | जैसे — 

समय – असमय, अवस्था – अनवस्था

इन शब्दों में ‘अ’ उपसर्ग लगाकर नया शब्द बनाया गया है | 

पाठ में से कुछ शब्द चुनिए और उनमे ‘अ’ एवं ‘अन्’ उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाइए | 

उत्तर-   ‘अ’ उपसर्ग लगाकर बनने वाले शब्द — 
स्थान – अस्थान 
• कुशल – अकुशल 
• सहज – असहज 
• बोध – अबोध 
• सत्य – असत्य 
• विश्वास – अविश्वास 
• निश्चित – अनिश्चित | 
‘अन्’ उपसर्ग लगाकर बनने वाले शब्द — 
• न्याय – अन्याय 
• उद्देश्य – अनुद्देश्य 
• उपस्थित – अनुपस्थित | 


एक कुत्ता और एक मैना पाठ का  शब्दार्थ 

• अधिकांश –       बहुत सारे, अधिकतर 
• अस्तगामी –       डूबता हुआ 
• व्याकुलता –       घबराहट, बेचैनी, परेशानी 
• क्षीणवपु –         पतला-दुबला शरीर
• प्रगल्भ –           वाचाल, अत्यधिक बोलने वाला 
• परितृप्ति –         पूर्णत: संतुष्ट होना 
• प्राणपण –         जान की बाजी लगा देना 
• अहैतुक –          बिना किसी वजह के, अकारण 
• मर्मभेदी –          हृदय को छूने वाले भाव, 
• तितल्ले –          मकान का तीसरा तल्ला या मंजिल 
• अनुकंपा –         दया
• अभियोग –        आरोप, इल्जाम 
• ईषत –             आंशिक रूप से 
• निर्वासन –         देश से निकाल देना या निकलने
• बिड़ाल –           बिलाव 
• मुख़ातिब –         सम्मुख होकर बात करना 
• सर्वव्यापक –      हर जगह उपस्थित 
• अपरिसीम –       असीमित, अंतहीन 
• यूथभ्रष्ट –           किसी समुह विशेष से बाहर निकला हुआ 
• धृष्ट –                बेशर्म, निर्लज्ज 
• वैराग्य –             विरक्ति, संन्यासी जीवन व्यतीत करना |  

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