‘र’ हिंदी वर्णमाला का सत्ताईसवां व्यंजन वर्ण है, जिसका उच्चारण जीभ के अगले भाग को मूर्धा के साथ कुछ स्पर्श करने से होता है। यह स्पर्श वर्ण और ऊष्म वर्ण के मध्य का वर्ण है। इसका उच्चारण स्वर और व्यंजन के मध्यवर्ती है; इसलिए इसे अन्तस्थ वर्ण कहते हैं। इसके उच्चारण में स्वर, नाद और घोष नामक प्रयास होते हैं।”
‘र’ के विभिन्न रूप- र, रा, रि, री, रु, रू, रे, रै, रो, रौ आदि हैं। हिन्दी वर्णमाला में र एक व्यंजन वर्ण है। हिन्दी भाषा में र का प्रयोग विभिन्न रूपों में होता है, कहीं र का प्रयोग स्वर के साथ होता है तो कहीं बिना स्वर के।
‘र’ में सभी मात्राएँ लग सकती है सिवाय ‘ऋ’ और हलंत (्) के, जैसे- र, रा, रि, री, रु, रू, रे, रै, रो, रौ।
‘र’ का प्रयोग शब्द के आरंभ में, मध्य में और अंत में कहीं भी आ सकता है। जैसे-
- आरंभ में- रमन, रमेश, रस्सी
- मध्य में- करतब, खराब, आराम
- अंत में- भंडार, प्यार, आतुर
रु, रू का प्रयोग: र में ह्रस्व “उ” और दीर्घ “ऊ” की मात्रा का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से होता है-
- ह्रस्व उ (र + उ = रु)- रुई, रुद्र, रुद्र, रुचि, रुपया, रुमाल, पुरुष
- दीर्घ ऊ ( र + ऊ = रू)- रूस, रूप, गुरु, अमरूद, डमरू
रेफ (र्) की मात्रा
व्याकरण की भाषा में, स्वर रहित ‘र्’ को “रेफ” कहा जाता है। किसी भी शब्द के पहले अक्षर में, रेफ का प्रयोग कभी नहीं होता है। शब्दों में रेफ का प्रयोग करते समय, इसके उच्चारण के बाद आने वाले वर्ण की अंतिम मात्रा के ऊपर रेफ लग जाता है। जैसे- पर्व, पर्यावरण, वर्णन, जुर्माना इत्यादि।
- अ + र् + थ = अर्थ
- क + र् + म = कर्म
- ब + र् + फ = बर्फ
- श + र् + म = शर्म
नोट:- रेफ का प्रयोग कभी भी शब्द के पहले अक्षर में नहीं होता है।
कुछ-कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिनमें दो रेफों का लगातार प्रयोग होता है, जैसे-
- धर्मार्थ,
- पूर्वार्ध
र के ऊपर भी रेफ का प्रयोग किया जाता है, जैसे-
- खर्र-खर्र
- टर्र-टर्र
रकार का प्रयोग
जब किसी शब्द में ‘र’ वर्ण के पूर्व कोई आधा वर्ण प्रयुक्त होता है तब ‘र’ का स्वरूप बदलकर उसी आधे वर्ण नीचे तिरछी रेखा (क्र) के रूप में प्रयुक्त होता है। ‘र’ के इस बदले स्वरूप को ‘रकार’ कहते हैं।
जैसे- क्रम, ग्रहण, ट्रेन, ड्राइवर, द्रव्य, प्रकार, ब्रह्मा, भ्रमण, व्रत, स्रोत, ह्रास आदि। इन शब्दों में क्रमशः क्, ग्, ट्, ड्, द्, प्, ब्, व्, स्, ह् अर्द्ध वर्ण हैं जबकि ‘र’ पूर्ण वर्ण है।
- स्पर्श व्यंजन में रकार का प्रयोग: क्र (क्रम), ग्र (ग्रहण), घ्र (व्याघ्र), ट्र (ट्रेन), ड्र (ड्रम), थ्र (थ्री), द्र (द्रव्य), ध्र (ध्रुव), प्र (प्रकार), फ्र (फ्रेम), ब्र (ब्रह्मा), भ्र (भ्रम), म्र (नम्र)।
- ऊष्म व्यन्जन में रकार का प्रयोग– व्र (व्रत), स्र (स्रोत), ह्र (ह्रास)।
- संयुक्त व्यन्जन में रकार का प्रयोग– त्रुटि (त् + र = त्र), श्रम (श + र = श्र)।
नोट:- रेफ में आधे र का प्रयोग होता है जबकि रकार में र से पहले प्रयुक्त वर्ण आधा होता है।
- द्विगुण व्यन्जन– ‘ड़’ और ‘ढ़’ रकार युक्त नहीं होते।
- स्वर वर्ण – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ रकार युक्त नहीं होते।
- अयोगवाह– अं एवं अः भी रकार युक्त नहीं होते।
“र्” और “ऋ” की मात्रा के प्रयोग में अंतर
प्राचीन संस्कृत व्याकरण में, ‘र्’ को व्यंजन वर्ण के रूप में मान्य किया जाता है। इसका उच्चारण द्वारा होने वाली ध्वनि स्वर के समय एक अनुश्वासनीय विलोम ध्वनि पैदा होती है। यह ध्वनि संस्कृत में ‘ह्रस्व’ ध्वनि कहलाती है। उदाहरण के लिए, ‘कर्म’ शब्द में ‘र्’ व्यंजन का प्रयोग होता है।
स्वर वर्ण ‘ऋ’ का प्रयोग संस्कृत भाषा में होता है और यह एक स्वरीय वर्ण है। ‘ऋ’ का प्रयोग किसी भी शब्द के साथ किया जाता है, वह शब्द तत्सम (संस्कृत शब्द) होता है। तत्सम शब्द संस्कृत से लिए गए हैं और उन्हें अपनी मूल संस्कृतिक रूप में ही उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, ‘कृष्ण’ शब्द एक तत्सम शब्द है जो संस्कृत से उधार लिया गया है।
- ऋ – वृक्ष, मृग, अमृत, पृथ्वी
- र् – सूर्य, गर्व, अर्क, अधर्म
नोट:- ‘र्’ व्यंजन वर्ण है जबकि ‘ऋ’ स्वर वर्ण है। ‘ऋ’ का प्रयोग जिस किसी भी शब्द के साथ होता है, वह तत्सम (संस्कृत का शब्द) शब्द ही होता है।
पदेन र (^) की मात्रा का प्रयोग
‘^’ यह ‘र’ का नीचे पदेन वाला रूप है। ‘र’का यह रूप स्वर रहित है। यह ‘र’ का रूप अपने से पूर्व आए व्यंजन वर्ण में लगता है।
पाई वाले व्यंजनों के बाद प्रयुक्त ‘र’ का यह रूप तिरछा होकर लगता है, जैसे- प्र, म्र, क्र इत्यादि।
- उ + म् + र = उम्र
- प् + र + े + म = प्रेम
पाई रहित व्यंजनों में नीचे पदेन का रूप ‘^’ इस तरह का होता है, जैसे- ड्राई, पेट्रोल, ट्रायल, राष्ट्रपति आदि।
- ट्रक
- राष्ट्र
‘द’ और ‘ह’ में जब नीचे पदेन का प्रयोग होता है तो ‘द् + र = द्र’ और ‘ह् + र = ह्र’ हो जाता है, जैसे- रुद्र, ह्रदय, द्रास, आदि।
- द + रि + द् + र् = दरिद्र
- ह् + र् + ा + स = ह्रास
त में जब पदेन र का प्रयोग होता है तो त् + र = त्र बन जाता है, जैसे- नेत्र, त्रिकोण, त्रिशूल आदि।
- ने + त् + र = नेत्र
- ने + त् + र = त्रिशूल
श में जब पदेन र का प्रयोग होता है तो श् + र = श्र बन जाता है, जैसे- श्रमिक, अश्रु, श्रवण आदि।
- श्रमिक = श् + र + मि + क
- अश्रु = अ + श् + र
कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिनमें दो पदेन र का प्रयोग एक ही शब्द में होता है, जैसे- प्रक्रिया, प्रक्रम आदि।
- प्रक्रिया = प् + र + ि + क् + र + या
- प्रक्रम = प् + र + क् + र + म
कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिनमें पदेन और रेफ का एक ही शब्द में प्रयोग होता है, जैसे- आर्द्रता, प्रार्थना, पुनर्प्रस्तुतिकरण।