उत्तराखंड का वीर योद्धा नीलू कठायत

उत्तराखंड का वीर योद्धा नीलू कठायत

“आज धरा को देखा मैंने
धड़कन में कोई विश्वास रहता है।
मेरे कलम के पन्नों में भी
नीलू कथायत का इतिहास रहता है।”
नीलू कथायत एक महान योद्धा था जोकि राजा गरुड़ ज्ञान चंद्र के दरबार में एक महान सेनापति था कहते हैं कि उसकी तलवार की चमक को देखकर शत्रु भी थर – थर कांपते  थे।
राजा गरुड़ ज्ञान चंद्र एक उच्च महत्वाकांक्षी राजा था कहते हैं कि कुमाऊं में अचानक यवनों का आक्रमण हो गया था।राजा ने नीलू कथायत से कहा कि मेरे राज्य से इन यवनों को खदेड़ दो।
“ये धरती है उन वीरों की
उन वीरों के नित साहस मिले।
जैसे धरती की ज्वाला में
सोना कुंदन नित ज्वलंत जले।”
नीलू वीर ने वहां के सारे यवनों को ऐसे खदेड़ा मानो सिंह भूमि में एक शेर सारे जानवरों पर भारी पड़ रहा हो। सेनापति विजयी रहे।
“जनश्रुतियां है ,कहानियां है
है अनमोल खजाना।
एक -एक से वीर मिले है
तुम भी यह बतलाना।”
राजा ने नीलू को कई पुरस्कार दिए तथा कई जागीरें दी नीलू एक महान आदर्शवादी सेनापति भी था,पर राजा के राज दरबार में एक जस्सा भी रहता था जो नीलू से ईर्ष्या करता था। जिसका एक दुर्ग भी था। उसने राजा को भड़काया राजा ने बिना कुछ सोचे उसका पद छीन लिया।कहते हैं कि राजा ने उस महान सेनापति के दो पुत्रों के आंखें निकाल दी।
नीलू कठायत
नीलू कठायत
नीलू को पता चला कि राजा को भड़काने वाला यह जस्सा है नीलू ने कहा कि “अगर इस जस्सा के भीतर अपना अभिमान है तो मेरे हृदय में भी अपने पुरखों का स्वाभिमान है।”
नीलू कथायत एक छोटी सी टुकड़ी ले जाकर जस्सा के राज महल में गया तथा उसको आते हुए देखकर जस्सा भागकर किसी गुफा में छुप गया लेकिन नीलू ने गुफा का पता कर लिया .
इसकी तलवारों की गाथा
बच्चा बच्चा भी बोला था।
डरते थे दुश्मन सारे
वो आग नहीं एक शोला था।
“नीलू ने गुफा के अंदर देखा तो वहां नीलू के साथ – साथ राजा गरुड़ ज्ञानचंद भी मौजूद था। नीलू ने राजा को तो छोड़ दिया लेकिन उस जस्सा का अंत कर दिया।”
रणजीत विजय आगाज भी था
कहीं सिंह -हरण हुंकार भी था।
यही प्रेम सुधा बरसती है
वो वीर योद्धा का इतिहास भी था।
आज के दायरे में देखा जाए तो हमें राजा या जो खास हो उसका इतिहास तो हम सभी जानते हैं लेकिन ऐसे छिपे हुए महावीर को हम कम जानते हैं। नीलू ने बाद में उसके महल में जाकर पूरे किले को तहस-नहस कर दिया तथा वहां से सारे उसके धन को ले जाकर गरीबो में दान कर दिया।
रणवीर भी था, महावीर भी था
कहीं धीर -वीर, गंभीर भी था।
जो योद्धाओं का योद्धा था
जो दानवीर बलवीर भी था।
“नीलू ने राजा को तो छोड़ दिया लेकिन राजा के मन में उसके प्रति  द्वेष भी था, राजा ने एक दिन उसके भोजन में विष मिला दिया था, उसको पता तो चल गया था लेकिन उसने कहा”मैं जान चुका हूं राजन कि इसमें विष मिलाया है लेकिन मैं फिर भी तुम्हें छोड़ता हूं तू भी क्या याद रखेगा कि किसी ने तुझे जीवनदान दिया।”
कहानी आपको आपको “कुमाऊं का इतिहास” में भी मिलेगा जोकि नीलू वीर की वीरता का वर्णन करता है।
यह गाथा है उस गाथा की
दीपों से मिलकर दीप जले।
मानों रंगो की होली में
सातों रंगों की डोली उठे।

– नरेंद्र भाकुनी
एम ए हिंदी , एम ए इतिहास ,बी एड

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