निराला के काव्य की विशेषताएँ
निराला के काव्य की विशेषताएँ suryakant tripathi nirala ki kavyagat visheshta par prakash daliye suryakant tripathi nirala ki kavyagat visheshta bataye छायावादी साहित्य छायावादी कवि छायावादी युग – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी हिंदी के एक स्वनामधन्य कवि थे। वे कविता के रचयिता मात्र नहीं ,स्वयं एक विराट महाकाव्य के नायक बनकर जिए और इतिहास बनकर उन्होंने अपनी जीवनलीला समाप्त की। निराला की तरह विलक्षण ,क्रांतिकारी व्रजदापी कठोर तथा कुसुमों से मृदुल साहित्यकार हिंदी साहित्य व भाषा के इतिहास में यदा – कदा आया करता है। ऐसा लगता है कि किसी विशिष्ट व्यकित्व को मापने के जितने भी पैमाने हैं ,वे सब निराला के सामने पहुँचकर स्तब्ध रह गए हों। इस दृष्टि से उनका उपनाम निराला उनके व्यक्तित्व का सबसे सही और समर्थ परिचायक है।
निरालाजी छायावादी कवियों में सबसे अधिक विद्रोही ,सर्वाधिक उदात्त ,जन – जीवन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील तथा जागरूक कवि रहे हैं। आधुनिक चेतना के विद्रोही स्वरों की सबसे अधिक और सर्वाधिक समर्थ अभिव्यक्ति निराला के काव्य में हैं। बंगाल में जन्म लेने के कारण उन्होंने आधुनिक चेतना से संपृक्त साहित्य का अध्ययन और अनुशीलन किया था। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ,स्वामी विवेकानंद ,रविन्द्रनाथ टैगोर आदि महापुरुषों का प्रभाव आपकी रचनाओं पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। निराला जी ने हिंदी साहित्य क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन करके एक युग प्रवर्तक कवि का काम किया। प्रसाद जी ने जहाँ हिंदी साहित्य की धारा को नया मोड़ दिया ,निराला ने उसमें गोता लगाकर उससे मोती प्राप्त किये। निराला के काव्य में हृदयवाद ,बुद्धिवाद ,दार्शनिकता और कवित्व का पुट एक साथ ही विद्यमान है। निराला का विद्रोही स्वर समाज ,साहित्य ,धर्म और नैतिकता सभी स्तरों पर मुखरित हुआ है। निराला हिंदी के सर्वाधिक प्रगतिशील और निराले कवि हैं। उनके व्यक्तित्व में जहाँ एक ओर विरोधों का समन्यव है ,वहीँ दूसरी ओर उनके काव्य में ठीक इसका विरोधाभास है।
काव्य का विद्रोही स्वर
वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीप शिखा-सी शांत भाव में लीन
वह टूटे तारों की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधावा है।
भाषा की उन्मुक्तता
निराला |
कविओं में अपना विशिष्ट स्थान बना पाए। कुकुरमुत्ता तक आते – आते वे अपनी इसी भाषा सम्बन्धी उन्मुक्तता के कारण प्रयोगवाद और नयी कविता के सूत्रधार तक कहें जाने लगे। उनकी भाषा में सहज स्वाभाविकता है। वह किसी प्रकार की कृतिमता सहन नहीं कर पाती। पंतजी के समान निराला ने भी खड़ी बोली को बनाया और माँजा है।
भक्ति और दर्शन
निरालाजी वेदांती दार्शनिक थे। उन पर वेदांत का प्रभाव था ,किन्तु वे भक्ति का द्वैतवाद चाहते थे। निरालाजी की कविताओं में कबीर जैसी भक्ति भावना ,लोक कल्याण परक रहस्यवाद भी विद्यमान है। आत्मा – परमात्मा के अनेक भावपूर्ण चित्र उन्होंने उतारे हैं। ब्रह्म की सत्ता को वे सर्वव्यापक मानते हैं और कबीर की भाँती कहते हैं –
जागो फिर एक बार !
प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें
अरुण-पंख तरुण-किरण
खड़ी खोलती है द्वार-
जागो फिर एक बार!
परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य
प्रकृति चित्रण
निराला की भाषा शैली
निराला की मुक्तक शैली
निराला हिंदी काव्य धारा के स्वछंदता वादियों कवियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्होंने स्वच्छंद काव्य लिखकर हिंदी में नयी छंद प्रणाली का आरम्भ किया। आपके काव्य में उच्चकोटि की कलात्मकता और मौलिकता है। निरालाजी छायावादी युग के क्रांतिकारी कवि थे। इन्होने दर्शन और रहस्यवाद ,भक्ति भावना ,प्रकृति प्रेम ,छायावाद ,देश प्रेम ,उपेक्षितों के प्रति दया एवं प्रगतिवाद सम्बन्धी विविध विषयों को अपने काव्य का विषय बनाया तथा हिंदी को मानवतावादी,अद्वैतवादी ,संवेदनवादी साहित्य प्रदान किया। काव्य शिल्प की दृष्टि से निराला आधुनिक हिंदी के कवि गुरु हैं तथा उनका काव्य विद्रोही मानवतावाद का व्याख्यान है।