ये अपना नववर्ष नहीं है

ये अपना नववर्ष नहीं है

ये अपना नववर्ष नहीं है,
अबतक कोई हर्ष नहीं है!

ये अपना नववर्ष नहीं है

कोविड19 से उबरे नहीं है,
जीवन में उत्कर्ष नहीं है!

सूर्य उत्तरायण में नहीं है,
कमी ठिठुरन में नहीं है!

जबके बसंती बयार नहीं,
तब तक हम तैयार नहीं!

जब चैत्र प्रतिपदा आएगा,
तब ही बसंतऋतु छाएगा!

अमुवां की डाली महकेगी,
तबके कोयलिया कुहुकेगी!

जबके भौंरा गुंजार करेगा,
कृषक-चैता मल्हार उठेगा!

जब सजनी मनुहार करेगी
पिया संग ससुरार चलेगी!

ऋतुराज का आगाज होगा,
मौसम में कुछ फाग होगा!

तब एक साल नया आएगा,
जनमन खुशहाल बनाएगा!

उस चैत से गिले-शिकवे थे,
अबके चैत में गले मिलेंगे!

कोरोना से निजात पा लेंगे!
तब अपना नववर्ष मनाएंगे!

चलो भाई अंग्रेजों खुश होले, 
नव वर्ष की शुभकामना देते!

—विनय कुमार विनायक

दुमका, झारखण्ड-814101

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