चिंता और चिता एक समान है
चिंता चिता समान है, कुछ तो करो विचार।
भाव सदा ही प्रेम का, प्रभु को भी स्वीकार।।
भाव सदा ही प्रेम का, प्रभु को भी स्वीकार।।
जय माता दी बोलकर,कर लो अपने काम।
मंगलमय हो जाएगा, मिल जाए आराम।।
सबसे पहले धर्म है, मातु-पिता का ध्यान।
फिर पत्नी बच्चे सभी, यह है सच्चा ज्ञान।।
फेसबुक पर लाइक है,सम्मुख है अलगाव।
मोबाइल में व्यस्तता, खोता जाता भाव।।
बेटी को सम्मान दो, यह देवी अवतार।
संसार में अनुपम निधि, ये घर का संसार।।
राजनीति इस शब्द ने, लिया भयानक रूप।
आपस में ही जूझते, बन बैठे हैं भूप।।
सर्दी में पानी गिरे, कमरे में धनवान।
पर गरीब वे क्या करे, कपड़ा है न मकान।।
– जितेंद्र मिश्र
लखनऊ, उत्तर प्रदेश(भारत)