सत्संगति पर निबंध

सत्संगति पर निबंध 
Essay on Keeping Good Company in Hindi

सत्संगति पर निबंध Satsangati Essay in Hindi Satsangati par Nibandh Essay on Keeping Good Company in Hindi Essay on satsangati ka mahatva in hindi सत्संगति पर निबंध हिंदी में सत्संगति का महत्व पर निबंध सत्संगति पर निबंध in short – सत्संगति से तात्पर्य अच्छे लोगों की संगति में रहने ,अपने जीवन में उनके द्वारा दिए गए अच्छे विचारों को उतारने तथा उनकी अच्छी आदतों को अपनाने से है। अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति अच्छे व सच्चे मनुष्य की संगत में रहना पसंद करता है। 

अच्छी संगति का प्रभाव – 

अच्छी संगति के द्वारा मनुष्य का जीवन बड़े आनंद एवं सुखपूर्वक व्यतीत होता है किन्तु यदि कोई व्यक्ति
सत्संगति

,कुसंगति में पड़ जाता है ,तो उसका जीवन दुःख पूर्वक व्यतीत होता है।इस प्रकार मनुष्य जैसी संगति में बैठता है उसका उस पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है। एक ही स्वाति बूँद केले के गर्भ में पड़कर कपूर बनती है तथा वही सांप के मुँह में पड़कर विष बन जाती है।

कुसंगति छोड़कर सत्संगति को ही अपनाना चाहिए –

अच्छे व्यक्तियों के संपर्क में आने से बुरे व्यक्ति भी अच्छे बन जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि सर्वप्रथम भीलों की संगति में रहकर डाकू बन गए थे तथा बाद में देवर्षि नारद की संगति से तपस्वी बनकर महर्षि वाल्मीकि नाम से प्रसिद्ध हुए।गंदे जल का नाला भी पवित्र पावन गंगा नदी में मिलकर गंगाजल बन जाता है।जो व्यक्ति समाज में उन्नति करना चाहता है ,उसे समाज में रहने व्यक्ति से काफी सोच समझ के बाद संपर्क जोड़ने चाहिए ,क्योंकि किसी ने ठीक ही कहा है कि मनुष्य का मन तथा जल का स्वभाव दोनों एक जैसे होते हैं।जब कभी ये दोनों गिरते हैं जो तेज़ी से गिरते हैं ,परन्तु इन्हें ऊपर उठाने में बड़ा पर्यंत करना पड़ता है।बुरे व्यक्ति को लोग नकारते हैं। कोई भी व्यक्ति बुरे व्यक्ति का आदर व सम्मान नहीं करता है।कुसंगति ,काम ,क्रोध ,मोह और मद पैदा करती है। इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को कुसंगति छोड़कर सत्संगति को ही अपनाना चाहिए। 

मानव जीवन में उन्नति का कारक – 

इस प्रकार यह कहाँ जा सकता है कि मानव जीवन में उन्नति की एकमात्र सीढ़ी सत्संगति है। हमें चाहिए कि हम सत्संगति की पतवार से अपनी जीवन रूपी नाव भवसागर से पारे लगाने पर हर संभव प्रयास करें तभी हम ऊँचाई पर पहुँच सकते हैं ,समाज में आदर व सम्मान प्राप्त कर सकते हैं। सत्संगति पाकर हमारा स्वभाव चन्दन के वृक्ष के समान हो जाना चाहिए – जिसकी सुगंध के मोह में आकर सर्प लिपट जाते हैं पर अपनी शीतलता के स्वभाव को नहीं छोड़ता है। 

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