औरंगजेब की आखिरी रात

औरंगजेब की आखिरी रात 
Aurangzeb Ki Aakhri Raat

औरंगजेब की आखिरी रात aurangzeb ki aakhri raat by ramkumar verma  aurangzeb ki aakhri raat by ramkumar verma summary – औरंगजेब की आखिरी रात डॉ रामकुमार वर्मा जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध एकांकी है .आपने इस एकांकी में मुग़ल बादशाह औरंगजेब की उस मानसिक स्थिति का चित्रण किया है। जब नवासी वर्ष की जर्जर अवस्था में वह अहमदनगर के किले में जीवन से निराश होकर अर्ध चेतन स्थिति में पड़ा हुआ था .उसके तीन बेटे उससे दूर कैद थे .उसके पास केवल उसकी चालीस वर्षीया पुत्री बेगम जीनत बैठी थी .वह रात्री के पिछले पहर में रोग ग्रस्त अपनी शैय्या पर पड़ा अपने काले कारनामे पर चिंतन करके पश्चाताप
aurangzeb ki aakhri raat
औरंगजेब की आखिरी रात

की आग में जल रहा है .एक ओर दक्षिण की लड़ाईयां में रिक्त कोष की उसे चिंता सता रही है ,तो दूसरी ओर सेना की निर्बलता ,प्रशासन की गड़बड़ी ,मराठों की अपराजेय शक्ति ,राजदरबारियों का आपसी संघर्ष और उसकी अस्वस्थता उसे बेचैन कर रही है .

औरंगजेब अपने काले कारनामों को याद कर रहा है .कभी उसे अपने पिता शाहजहाँ को कैद में डालने के दुष्कृत्य पर ग्लानी हो रही है तो कभी अपने सगे भाइयों का वध करा देने पर .कभी हिन्दुओं पर लगाये गए जाजिया कर उसकी कठोर वसूली पर पश्चाताप करता तो कभी अपनी धार्मिक मदान्धता पर ही चिढ़ जाता है . उसके पास बैठी रहने वाली शहजादी जीनत ही उसे संतोष देती थी .उसकी व्याकुलता बढती ही जा रही थी .रात्री के अंतिम पहर में शाहजादी के अतिरिक्त सैनिक करीम और हकीम ही उस समय शहंशाह का साथ दे रहे थे .
पश्चाताप की आग में जलने वाले बादशाह ने स्वर्ण पिंजरे में टंगे एक पक्षी को मुक्त करके राहत की सांस ली .अंत में वह अपने कातिब को बुलवाकर अंतिम वसीयत लिख देता है .इसी समय अजान की बेला में उसका प्राणांत हो जाता है .इस मुग़ल बादशाह औरंगजेब के दुःख भरे जीवन का अंत होता है .

औरंगजेब की आखिरी रात एकांकी देश काल व वातावरण – 

एकांकी में मुग़ल सम्राट औरंगजेब के कुकृत्यों को मानसिक विक्षोभ के रूप में प्रस्तुत किया गया है .उसने प्रजा पर जो अत्याचार किया था ,हिन्दुओं पर जो जाजिया कर लगाया था ,अपने पिता शाहजहाँ को कैद करके और भाइयों को क़त्ल करके जो शासन प्राप्त किया था ,उन सभी घटनाओं का सजीव चित्र एकांकी में उभरा है .मुगलकालीन इतिहास के जीर्ण पृष्ठ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में प्रस्तुत करने में लेखक को बड़ी सफलता मिली है .मुगलकालीन परम्पराओं का परिवेश इसमें पुनः जी उठा है .
नाटक में वर्णित घटनाएं सत्य एवं इतिहास समर्पित हैं .गोलकुंडा और बीजापुर की रियासतों को जीतकर औरंगजेब अहमदनगर में ही आकर टिका और वहीँ उसकी मृत्यु हुई थी .उसी के शासन काल में मराठा शक्ति बढती जा रही थी और विलासी मुग़ल सेना उसे दबाने में अशक्त हो रही थी .चारों ओर विद्रोह और अराजकता की स्थिति देखकर वह अत्यंत भयभीत और चिंताग्रस्त ह उठा था .इन्ही कारणों से वह दिनोदिन जर्जर होकर मृत्यु को प्राप्त कर लिया .

औरंगजेब की आखिरी रात एकांकी का उद्देश्य samiksha – 

इस एकांकी के माध्यम से औरंगजेब के अंतर्द्वंद्व में निहित कथाओं के मनोवैज्ञानिक चित्रण डॉ वर्मा ने प्रस्तुत किया है कि जीवन में उन्माद में प्रवाहित होकर किया जाने वाला कुकर्म या सत्कर्म अपना प्रभाव अवश्य दिखाता है .औरंगजेब की तरह अंततः प्रत्येक प्राणी को अपने कृत्यों पर पश्चाताप करना पड़ता है .लेखक ने इस एकांकी के माध्यम से मानव जीवन के दुर्बल पक्ष का उद्घाटन किया है .मानव की सबसे बड़ी दुर्बलता उसकी महत्व कांक्षा है।इसके वशीभूत होकर औरंगजेब शक्ति के मद से मदांध व्यक्ति औरंगजेब बन जाता है। मृत्यु के पूर्व व्यक्ति की आत्मा निर्मल हो जाती है। स्मृतियां सजग हो जाती है ,जीवन की घटनाएँ चलचित्र की भाँती मानस – पलट पर घूमने लगती हैं और व्यक्ति तटस्थ होकर अपने कर्मों के अनोचित्य पर विचार करता है। जीवन के ऐसी ही कतिपय चिर सत्यों से अवगत कराना लेखक का इस एकांकी में उद्देश्य रहा है। इस उद्देश्य में नाटककार को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। 

औरंगजेब का चरित्र चित्रण –

औरंगजेब इस एकांकी का मुख्य पात्र हैं। एकांकी की सम्पूर्ण घटनाएं उसी के पास केन्द्रित हैं। इस प्रकार एकांकी का केंद्र ८९ वर्ष का बुढा ,रोगग्रस्त मुग़ल सम्राट औरंगजेब है। 
वह स्वयं आप बीती अपनी पुत्री को सुना रहा है। किन्तु इस स्वर में निराशा ,वेदना ,पीड़ा और असहायता है। अहमदनगर के किले में मृत्यु शैय्या पर बादशाह का शरीर रोग से जर्जर हो उठा है। ज्वर और खांसी से बेचैन बादशाह की सेवा करने के लिए उसकी चालीस वर्षीय पुत्री जीनत के समक्ष उसकी मुख मुद्रा मलिन और पश्चाताप से पूर्ण है। उसकी खाँसी से वह अनुभव करती है कि मुग़ल साम्राज्य की जड़ें चरमरा रही हैं। अपने जीवन में उसने जो कुकर्म किये हैं ,उन्हें स्मरण कर वह भयभीत होता है और काँपता है। वह स्वीकार करता है कि अविश्वास ,निर्ममता ,अन्याय ,हिंसा ,छल ही उसका अस्त्र और दैनिक व्यवहार रहा है। उसके जीवन भर के कुकृत्य उसे सर्प दन्त की तरह चुभ रहे हैं और वह निरंतर परेशान होता जा रहा है। इस प्रकार औरंगजेब के चरित्र चित्रण में वर्मा जी ने उसकी तानाशाही का सच्चा चित्रण प्रस्तुत किया है।  
औरंगजेब में हमें विचारों का व्यूह दिखाई पड़ता है। वह अपने कुकर्मों को भूल नहीं पाता है। फलत : दुहरा कर जीवित रहना चाहता है। जीवन के कुकर्मों से वह अत्यंत भयभीत हो गया है। स्वर्ण पिंजर से पक्षी हो मुक्त करना उसकी मानसिक संतुष्टि  को इंगित करता है। इस घटना से वह अपने कैदी पिता को स्मरण करता है जिसे मृत्यु के अंतिम क्षणों तक उसने मुक्त नहीं किया था। यहाँ वह पागलपन में प्रलाप करते देखा जाता है।  
एकांकी में औरंगजेब को बड़ा शंकालु दिखाया गया है। इसी स्वभाव से अपने पिता को वह जीवन भर कैद रखता है ,भाइयों की हत्या करता है ,पुत्र को आजन्म कैद में डाल देता है। यहाँ तक कि वह हकीम की दी गयी दवा तक को नहीं पीना चाहता है। वह अपनी पुत्री जीनत पर भी पूर्ण विश्वास नहीं करता है। वह अपने आप को पूर्ण अपराधी के रूप में देखता है। अंत में ,वह असंख्य पापों के पश्चाताप के साथ संसार से विदा ले लेता है। 
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