गठिया रोग कैसे होता है?
गठिया रोग का प्रारम्भ जोडों में सूजन के साथ होता है, जोडों में सूजन के साथ जोड लाल होने लगते हैं एवं इन जोडों में सुई सी चुभन उत्पन्न होने लगती है। यही आगे चलकर गठिया में एवं गठिया आगे चलकर गठिया रोग में परिवर्तित हो जाता है। गठिया रोग के अलग अलग लक्षण प्रकट होते हैं। इन लक्षणों के आधार पर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में गठिया रोग के सौ से भी अधिक प्रकारों को वर्णित किया गया है।
अब आपके मन में यह प्रश्न उत्पन्न होना भी स्वाभिक ही है कि गठिया रोग की उत्पत्ति कैसे होती है अर्थात इस रोग की उत्पत्ति के क्या क्या कारण होते हैं अत: अब गठिया रोग की उत्पत्ति के कारणों पर विचार करते हैं –
गठिया रोग के कारण
गठिया जोडों से सम्बन्धित रोग है जिसे सामान्य भाषा में गठिया के नाम से जाना जाता है। वर्तमान समय में यह रोग बहुत तेजी से समाज में बढ रहा है। दिल्ली में एम्स के एक अनुमान के अनुसार भारत वर्ष में हर छह में से एक व्यक्ति गठिया रोग से ग्रस्त है।
अधिक देर तक एक स्थिति में बैठकर कार्य करने से जब जोडों में रक्त संचार रुकने लगता है तब जोडों में सूजन के साथ वेदना उत्पन्न होने लगती है जो आगे चलकर गठिया रोग का रुप ग्रहण कर लेती है।
रोगोत्पत्ति का प्रमुख कारण है। मांस-मछली में प्यूरिन नामक तत्व पाया जाता है जो शरीर में जाकर यूरिक एसिड को उत्पन्न करता है।
शरीर स्वस्थ एवं जोड लचीले बनते हैं किन्तु इसके विपरित यौगिक क्रियाओं का अभ्यास नही करने से जोडों में कठोरता उत्पन्न होती है जो आगे चलकर धीरे धीरे गठिया रोग का रुप ग्रहण कर लेती है।
गठिया रोग के लक्षण
1. जोडों में सूजन के साथ त्रीव वेदना होना – जोडों में सूजन के साथ सुई की चुभन के समान त्रीव वेदना गठिया रोग का सबसे प्रधान एवं मूल लक्षण है। इस रोग में रोगी को उगुलियों, कलाई, बाजुओं, टागों, घुटनों एवं कुल्हों में असहनीय वेदना होती है। रोगी को प्रात:काल नींद से जागते समय दर्द एवं जकडन और अधिक बढ जाता है।
(2) जोडों में कठोरता के साथ अस्थियों का टेडा होना : गठिया रोगी के जोडों में लचीलेपन के स्थान पर कठोरता उत्पन्न होने लगती है। रोगी के जोड कडे होकर जाम होने लगते हैं। रोग के त्रीव अवस्था में अस्थियों में टेढापन आने लगता है। विशेष रुप से हाथों एवं पैरों की उगुलियों में टेढापन आ जाता है। रोगी के जोडों में गतिशीलता का अभाव होने लगता है और शरीर अकडने लगता है।
- प्रथम चरण अथवा प्रारम्भिक अवस्था ( First or Primary Stage) : रोगी को बुखार आता है तथा शरीर में दर्द एवं थकान बढने लगती है।
- द्वितीय चरण ( Middle Stage): रोगी के हाथों एवं पैरों में अकडन प्रारम्भ हो जाती है। प्रात:काल रोगी का पूरा शरीर अकडा हुआ रहता है जिसे सामान्य होने में 15 से 20 मिनट अथवा अधिक समय लग जाता है।
- तृतीय चरण ( Final or Last Stage): रोगी के जोडों में भयंकर दर्द रहता है। जोडों में गाठें पड जाती है। जोडों को दबाने पर त्रीव वेदना होती है तथा हाथों व पैरों की उंगलियां टेढी होने लगती है।
यद्यपि उपरोक्त लक्षणों के आधार पर शरीर में गठिया रोग की उपस्थिति का ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में गठिया रोग की जॉच निम्न परीक्षणों के आधार पर की जाती है-
- दर्द एवं सूजन से ग्रस्त जोड का X- ray : शरीर के जिस जोड पर दर्द के साथ सूजन है, उस जोड पर X- ray डाल कर गठिया रोग की जॉच की जाती है।
- साइनोवियल फ्लूड की जॉच : दो अस्थियों के जुडनें के स्थान पर साइनोवियल फ्लूड (श्लेष द्रव) उपस्थित होता है जो गति के समय अस्थियों के सिरों को आपस में टकराकर घिसने से बचाने का कार्य करता है। शरीर के जोडों में साइनोवियल फ्लूड (श्लेष द्रव) की कम मात्रा गठिया रोग की और संकेत करती है।
- मूत्र में यूरिक एसिड की जॉच: शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ का जोडों में एकत्र हो जाती है। जोडों में ये यूरिक एसिड के क्रिस्टल जमा होकर दर्द एवं सूजन उत्पन्न करते हैं अत: मूत्र में यूरिक एसिड की बढी मात्रा गठिया रोग की और संकेत करती है।
इस प्रकार गठिया रोग से ग्रस्त होने पर रोगी के शरीर में अकडन और जकडन बढती चली जाती है। रोगी के जोडों में दर्द बढता जाता है और हाथों व पैरों की अस्थियों में टेडापन आने लगता है। रोग से पिडित व्यक्ति को पैदल चलने एवं उठने बैठने में कठिनाई होने लगती है।
गठिया रोग का आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद शास्त्र में गठिया रोग को आमवात के नाम से जाना जाता है। वहां पर आम शब्द को विषाक्त तत्व के संदर्भ में एवं वात को वायु के अर्थ में लिया गया है अर्थात जब विषाक्त अथवा दूषित वायु जोडों में एकत्र होकर दर्द एवं सूजन उत्पन्न करती है, तब वह रोगावस्था “आमवात” कहलाती है। आमवात को ही आधुनिक चिकित्सा विज्ञान गठिया रोग कहता है।
आयुर्वेद शास्त्र में विषाक्त दूषित वायु को शरीर से निष्कासन ही इस रोग की मूल चिकित्सा के रुप में वर्णित किया गया है। इसके लिए रोगी की पंचकर्म चिकित्सा अत्यन्त प्रभावी चिकित्सा है। पंचकर्म के साथ साथ रोगी को निम्न औषध द्रव्यों का सेवन कराने से रोग में आराम मिलता है –
एक से तीन ग्राम गुग्मुल गर्म पानी के साथ रोगी को सेवन कराने से रोग में लाभ मिलता है।
रोगी को 1 से 3 ग्राम की मात्रा में पीसी हल्दी का चूर्ण एवं सौंठ समान मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम नियमित सेवन कराने से दर्द एवं सूजन में लाभ प्राप्त होता है।
5 से 10 ग्राम मैथी दाने का चूर्ण सुबह गर्म जल के साथ सेवन कराने से रोगी को रोग में लाभ प्राप्त होता है।
चार से पांच लहसुन की कलियों को दूध में उबालकर रोगी को पिलाने से रोग में लाभ प्राप्त होता है।
लहसुन का रस कपूर में मिलाकर प्रभावित जोडों की मालिश करने से रोगी को आराम मिलता है।
रात्रिकाल में सोने से पूर्व प्रभावित जोडों पर गर्म सिरके से मालिश करने से दर्द एवं जकडन में आराम मिलता है।
रोगी को गर्म जल अथवा गुनगुने दूध के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन कराने से भी रोग में लाभ मिलता है।
गठिया रोगी के लिए सावधानियां एवं सुझाव
- गठिया रोग को बढने नही देना चाहिए अपितु रोग की प्रारम्भिक अवस्था में लक्षण प्रकट होते ही रोग पर ध्यान देते हुए आहार विहार संयम एवं वैकल्पिक चिकित्सा द्वारा तुरन्त रोग का प्रबन्धन कराना चाहिए।
- रोगी को एक स्थान पर एवं एक स्थिति में लम्बे समय तक बैठकर कार्य नही करना चाहिए।
- रोगी को अपने कार्य सही मुद्रा में ही करने चाहिए।
- रोगी को प्रात:कालीन भ्रमण करना चाहिए एवं पैदल चलने की आदत बनानी चाहिए।
- रोगी को नियमित रुप से प्रात:काल धूप स्नान लेना चाहिए।
- रोगी को दर्द निवारक दवाईयों का लम्बे समय तक सेवन नही करना चाहिए।
- रोगी को आहार में फलों एवं सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए तथा वातवर्धक खाद्य पदार्थो के सेवन से बचना चाहिए।
- रोगी को फ्रीज के ठंडे पानी का सेवन पूर्ण रुप से बंद कर देना चाहिए एवं उबले हुए गुनगुने पानी का ही सेवन करना चाहिए।
- रोगी को नियमित आसन प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए।
- सभी प्रकार के र्दुव्यसनों को पूर्ण रुप से छोड देना चाहिए।
इस प्रकार उपरोक्त सावधानियों को ध्यान में रखने से रोग जल्दी ठीक होता है।
- असाध्य रोगों की सरल चिकित्सा – डाॅ0 नागेन्द्र कुमार नीरज, पापुलर बुक डिपो, जयपुर।
- योग चिकित्सा विज्ञान – श्री आदित्य योगी, योग जीवन धाम ट्रस्ट, हरिद्वार।
- प्राकृतिक आयुर्विज्ञान – डाॅ0 राकेश जिन्दल, आरोग्य सेवा प्रकाशन, मोदी नगर (उ0प्र0)।
- प्राकृतिक चिकित्सा – डाॅ0 टी0 एन0 श्रीवास्तव, मैत्रेयी प्रकाशन, नई दिल्ली।
- वृहद आयुर्वेदिक चिकित्सा – डाॅ0 ओम प्रकाश सक्सेना, हिन्दी सेवा सदन, मथुरा।
- एक्यूप्रेशर – डा0 अतर सिंह, एक्यूप्रेशर हैल्थ सेटंर, चण्डीगढ।