घबराना नहीं चाहिए
Ghabrana Nahi Chahiye
एक बार कुछ खरगोश गर्मी के दिनों में झरबेरी की एक सूखी झाड़ी में इकट्ठे हुए . खेतों में उन दिनों अन्न न होने से वे सब भूखे थे और इन ड़ों सुबह और शाम को गाँव से बाहर घुमने वालों के साथ वाले कुत्ते भी उन्हें तंग करते थे .मैदान की झाडियाँ सूख गयी थी .कुत्तों के दौड़ने पर खरगोशों को छिपने का स्थान बहुत हैरान होने पर
खरगोश |
मिलता था .इन सब दुखों से वे सब बेचैन हो गए थे .
एक खरगोश ने कहा – ब्रह्मा जी ने हमारी जाती के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है .हमको इतना छोटा और दुर्बल बनाया .हमें उन्होंने न तो हिरन जैसे सींग दिए ,न बिल्ली जैसे तेज़ पंजे .अपने शत्रुओं से बचने का हमारे पास कोई उपाय नहीं .सबके सामने से हमें भागना पड़ता है .सब ओर से सारी विपत्ति हम लोगों के सिर पर ही सृष्टि कर्ता ने डाल दी है .
दूसरे खरगोश ने कहा – मैं तो अब इस दुःख और आशंका से भरे जीवन से घबरा गया हूँ .मैंने तालाब में डूबकर मर जाने का निश्चय किया है .
तीसरा बोला – मैं भी मर जाना चाहता हूँ .अब और दुःख मुझसे नहीं सहा जाता .मैं अभी तालाब में कूदने जाता हूँ .
हम सब तुम्हारे साथ चलते हैं .हम सब एक रहे हैं तो साथ ही मरेंगे . सब खरगोश बोल उठे .सब एक साथ तालाब की ओर चल पड़े .तालाब के पानी से निकलकर बहुत से मेढ़क किनारे पर बैठे थे .जब खरगोशों के आने की आहट उन्हें मिली तो वे छपा – छप पानी में कूद पड़े. मेढकों को डरकर पानी में कूदते देखकर खरगोश रुक गए .एक खरगोश बोला – भाइयों ! प्राण देने की आवश्यकता नहीं है ,आओ लौट चलें .जब ब्रह्मा की सृष्टि में हमसे भी छोटे और हमसे भी डरने वाले जीव रहते हैं और जीतें हैं ,तब हम जीवन से क्यों निराश हों ?
उसकी बात सुनकर खरगोशों ने आत्म हत्या का विचार छोड़कर लौट गए .एक खरगोश बोला कि जब तुम पर विपत्ति आये और तुम घबरा उठो तो यह देखो की संसार में कितने अधिक लोग तुमसे भी अधिक दुखी ,दरिद्र ,रोगी और संकटग्रस्त हैं .तुम उनसे कितनी अच्छी दशा में हो .फिर तुम्हे क्यों घबराना चाहिये .
कहानी से सीख –
- विप्पति से घबराना नहीं चाहिए .
- आत्महत्या कभी नहीं करनी चाहिए ,बल्कि जीवन में संघर्ष से आगे बढ़ना चाहिए .