जीना छोड़ देगी
तू स्त्री है
तो क्या ?
जीना छोड़ देगी
भूखी सड़क पर
या घर में
छुपी रोती रहेगी
टटोलकर कलाइयाँ,
खुरचकर
जमीन को
निर्बलता में जीती रहेगी I
फफकते
बहाते आँसू
जुर्म की हथकड़ियाँ
डालकर
इन दरिंदों के हाथ
पिटती रहेगी I
उठा आवाज
कर संघर्ष
कहाँ विराम ?
कहाँ अल्प विराम ?
कर ताण्डव
दिखा
शक्तियाँ जीती जगतीं
भर ऊर्जा
अंदर मन में
कर जाग्रति
जमा पाँव अखाड़े में
तू
अब छोड़
मुख मोड़ना पीछे
व्यतीत क्षण में I
यह रचना अशोक बाबू माहौर जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है . आप लेखन की विभिन्न विधाओं में संलग्न हैं . संपर्क सूत्र –ग्राम – कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)476111 , ईमेल-ashokbabu.mahour@gmail.
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