नयी चेतना – महेंद्रभटनागर

महेंद्रभटनागर-विरचित ‘नयी चेतना’ हिन्दी प्रगतिशील कविता की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। इसमें कवि की सन्‌ १९५० से १९५३ के मध्य लिखी ४५ कविताएँ समाविष्ट हैं। ‘नयी चेतना’ की अनेक कविताएँ ‘हंस’ में प्रकाशित हुईं; यथा — ललकार, नव-निर्माण, युग और कवि, बरगद आदि। इस संकलन की बहु-चर्चित बहु-उद्‌धृत अन्य कविताएँ हैं — बिजलियाँ गिरने नहीं देंगे!, आज़ादी का त्योहार, काटो धान आदि। यहाँ उनकी विश्व-शान्ति पर लिखित कविता ‘बिजलियाँ गिरने नहीं देंगे!’ प्रस्तुत है; जिसका अनुवाद देश-विदेश की अनेक भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। यह कविता समय-समय पर विभिन्न पाठ्‌य-पुस्तकों में भी सम्मिलित की जाती रही है।

बिजलियाँ गिरने नहीं देंगे !

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कुछ लोग

चाहे ज़ोर से कितना

बजाएँ युद्ध का डंका

पर, हम कभी भी

शांति का झंडा

ज़रा झुकने नहीं देंगे !

हम कभी भी

शांति की आवाज़ को

दबने नहीं देंगे !

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क्योंकि हम

इतिहास के आरम्भ से

इंसानियत में,

शांति में

विश्वास रखते हैं,

गौतम और गांधी को

हृदय के पास रखते हैं !

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किसी को भी सताना

पाप सचमुच में समझते हैं,

नहीं हम व्यर्थ में पथ में

किसी से जा उलझते हैं !

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हमारे पास केवल

विश्व-मैत्री का

परस्पर प्यार का संदेश है,

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हमारा स्नेह –

पीड़ित ध्वस्त दुनिया के लिए

अवशेष है !

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हमारे हाथ —

गिरतों को उठाएंगे,

हज़ारों

मूक, बंदी, त्रस्त, नत,

भयभीत, घायल औरतों को

दानवों के क्रूर पंजों से बचाएंगे !

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हमें नादान बच्चों की हँसी

लगती बड़ी प्यारी ;

हमें लगती

किसानों के

गड़रियों के

गलों से गीत की कड़ियाँ

मनोहारी !

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खुशी के गीत गाते इन गलों में

हम

कराहों और आहों को

कभी जाने नहीं देंगे !

हँसी पर ख़ून के छींटे

कभी पड़ने नहीं देंगे !

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नये इंसान के मासूम सपनों पर

कभी भी बिजलियाँ गिरने नहीं देंगे !
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