मरते तो हम भी है रोज

मरते तो हम भी है रोज 

हर तहरीर एक कयायत नही होती !
हर रखी हुई चीज अमानत नही होती !!

बेबसी की जुबां में जवाब के कितनें लफ्ज हैं,

मरते तो हम भी है रोज

वरना हर खामोशी शराफत नही होती !!

तस्वीरों में क्या साज क्या सज्जा है दिलकश,
हर आंखों की मासुमियत नही होती !!

मरते तो हम भी है रोज इल्म के जहर से ,
लेकिन हर मौत की शोहरत नही होती !!

जलते है चिराग भी जलते है घर भी ,
मगर हर शमां की खासियत नही होती !!

मेरी बहस पर ए आवाम शोर मचाती है,
फिर भी हर सच में कोई इबादत नही होती !!

ऐ रोज के दिन-रात कुछ खास नही जचती,
हर वक्त की ताउम्र जरूरत नही होती !!


मेरे हालात पर कभी

ए वक्त मेरे हालात पर कभी अफसोस कर दे…
शोर करते हुए मेरे दिल को खामोश कर दे !!

बनावट की शक्ल में मुस्कुराता हूं लोगों के सामनें,
ऐ उजाले मेरे अन्धेरे को मेरा आगोश कर दे !!

कुछ खुशी भी ना रहे मेरे बचे हुए ख्वाबों में,
ऐ शाकी गम ए जाम देकर मुझे बेहोश कर दे !!

इतना मिला है तुमसे कुछ कह न पाऊँ जुबां से,
ऐ जिन्दगी मेरी उम्र को इतना कशमश कर दे !!

जहां जाता हूं मिल जाती है तू मुझे नये तस्वीर में,
ऐ शहर मेरे गम को जरा और दिलकश कर दे !!

देकर वो अपनी कसम

देकर वो अपनी कसम बेकली बना गये,
चोट को अपनी ख्वाबों में असली बना गये !!

डूब गये तो मिट गये नजीर पेश करते है,
मेरा इल्म लेकर मुझे ही कठपुतली बना गये !

लगाये बैठे है शिकारी हुस्न के चारे बिछा कर ,
बेमुरव्वत की समन्दर में छोटी मछली बना गये !!

इन दिनों आशिकों का दिल सीने में नही रास्ते में है,
डर तो लगता है जैैसे जवानी एकेली बना गये !!

चाँद को रोजमर्रा की तसदीक देते है हर रोज,
हमें ना जानें किस बात की पहेली बना गये !!

यह रचना राहुलदेव गौतम जी द्वारा लिखी गयी है .आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है . आपकी “जलती हुई धूप” नामक काव्य -संग्रह प्रकाशित हो चुका  है .
संपर्क सूत्र – राहुल देव गौतम ,पोस्ट – भीमापर,जिला – गाज़ीपुर,उत्तर प्रदेश, पिन- २३३३०७
मोबाइल – ०८७९५०१०६५४

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