मराठों के पतन के प्रमुख कारण
मराठों के पतन के प्रमुख कारण क्या थे
- एकता का अभाव
- दृढ़ संगठन का अभाव
- योग्य नेतृत्व का अभाव
- दूरदर्शिता और कूटनीतिक अयोग्यता
- आदर्शो का त्याग
- दोषपूर्ण सैन्य संगठन
- कुप्रशासन और दूशित अर्थव्यव्स्था
- भारतीय राज्यो से शत्रुता
- अंग्रेजो की सार्वभौमिकता
एकता का अभाव-
मराठों में एकता का सर्वदा से अभाव था। सामतं प्रथा के कारण मराठा साम्राज्य कई छोटे-बड़ े
राज्यों में विभाजित था। पेशवा माधवराव के बाद केंद्रीय सत्ता शिथिल हो गयी थी और एकता का
अभाव हो गया था। मराठा सामंतों और शासकों में पारस्परिक आंतरिक कलह, ईश्र्या और द्वेश थे। वे
अलग-अलग संधि और युद्ध करते थे। अत: वे अपनी संकीर्ण महत्वकांक्षाओं तथा स्वार्थ-लोलुपता का
त्यागकर एकता के सूत्र में नहीं बंध कर अंग्रेजों के विरूद्ध कभी संयुक्त मोर्चा स्थापित नहीं कर सके।
राज्यों में विभाजित था। पेशवा माधवराव के बाद केंद्रीय सत्ता शिथिल हो गयी थी और एकता का
अभाव हो गया था। मराठा सामंतों और शासकों में पारस्परिक आंतरिक कलह, ईश्र्या और द्वेश थे। वे
अलग-अलग संधि और युद्ध करते थे। अत: वे अपनी संकीर्ण महत्वकांक्षाओं तथा स्वार्थ-लोलुपता का
त्यागकर एकता के सूत्र में नहीं बंध कर अंग्रेजों के विरूद्ध कभी संयुक्त मोर्चा स्थापित नहीं कर सके।
दृढ़ संगठन का अभाव-
मराठों के विशाल साम्राज्य की एक बड़ी दुर्बलता यह थी कि वह दृढ़ और सुसंगठित नहीं था।
मराठा साम्राज्य का स्वरूप एक ढीला-ढाला राजनीतिक संघ था जिसका प्रत्येक अंग स्वतंत्र था।
भोसले सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ आदि मराठा शासकों और सामंतों की पृथक-पृथक भूमि और राज्य
थे। इनमें केन्द्र का प्रभाव और नियंत्रण नगण्य था। अत: मराठा संघ शड़यन्त्रो और प्रतिस्पर्धा का केन्द्र बन
गया। इससे वे एक-एक करके परास्त होते गये।
मराठा साम्राज्य का स्वरूप एक ढीला-ढाला राजनीतिक संघ था जिसका प्रत्येक अंग स्वतंत्र था।
भोसले सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ आदि मराठा शासकों और सामंतों की पृथक-पृथक भूमि और राज्य
थे। इनमें केन्द्र का प्रभाव और नियंत्रण नगण्य था। अत: मराठा संघ शड़यन्त्रो और प्रतिस्पर्धा का केन्द्र बन
गया। इससे वे एक-एक करके परास्त होते गये।
योग्य नेतृत्व का अभाव-
पेशवा माधवराव, महादजी सिंधिया, यशवंतराव होल्कर जैसे प्रतिभासंपन्न समर्थ नेताओं के देहांत
के बाद मराठों में ऐसा वीर, साहसी और योग्य नेता नहीं हुआ जो मराठों को एकता के सूत्र में बांधने में
सफल होता। नाना फड़नवीस ने अव’य मराठों को पुन: संगठित करने का प्रयास किया, परंतु वह स्वयं
दोषपूर्ण था और फलत: उसके विरूद्ध शड़यंत्र होते रहे। उसकी मृत्यु के बाद चरित्रवान, योग्य व समर्थ
नेतृत्व के अभाव में मराठा संघ विश्रृंखलित हो गया।
के बाद मराठों में ऐसा वीर, साहसी और योग्य नेता नहीं हुआ जो मराठों को एकता के सूत्र में बांधने में
सफल होता। नाना फड़नवीस ने अव’य मराठों को पुन: संगठित करने का प्रयास किया, परंतु वह स्वयं
दोषपूर्ण था और फलत: उसके विरूद्ध शड़यंत्र होते रहे। उसकी मृत्यु के बाद चरित्रवान, योग्य व समर्थ
नेतृत्व के अभाव में मराठा संघ विश्रृंखलित हो गया।
दूरदर्शिता और कूटनीतिक अयोग्यता-
मराठा नेताओं और शासकों में राजनीतिक अदूरदशिरता और कूटनीतिक योग्यता का अभाव था।
इसीलिए सर्वाधिक शक्तिशाली होते हुए भी वे स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व और उच्च लक्ष्य स्थापित नहीं
किये। उन्होंने शक्तिहीन खोखले जर्जारित मुगल साम्राज्य को सुरक्षित रखने में ही अपनी शक्ति लगा
दी। इस प्रकार उनकी शक्ति और सत्ता का अपव्यय हुआ। मराठों ने स्वयं कोई दृढ़ स्वतंत्र अखिल
भारतीय राज्य की कल्पना नहीं की, न ही कोई पृथक राजनीतिक संगठन स्थापित किया, कोई दूरदश्र्ाी
राजनीतिक लक्ष्य भी नहीं अपनाया। उन्होंने शड्यंत्र, कुचक्र, चालाकी से अपने स्वार्थो की पूर्ति में ही
अपनी शक्ति लगा दी। इससे अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से उनमें कभी एकता नहीं होने दी।
इसीलिए सर्वाधिक शक्तिशाली होते हुए भी वे स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व और उच्च लक्ष्य स्थापित नहीं
किये। उन्होंने शक्तिहीन खोखले जर्जारित मुगल साम्राज्य को सुरक्षित रखने में ही अपनी शक्ति लगा
दी। इस प्रकार उनकी शक्ति और सत्ता का अपव्यय हुआ। मराठों ने स्वयं कोई दृढ़ स्वतंत्र अखिल
भारतीय राज्य की कल्पना नहीं की, न ही कोई पृथक राजनीतिक संगठन स्थापित किया, कोई दूरदश्र्ाी
राजनीतिक लक्ष्य भी नहीं अपनाया। उन्होंने शड्यंत्र, कुचक्र, चालाकी से अपने स्वार्थो की पूर्ति में ही
अपनी शक्ति लगा दी। इससे अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से उनमें कभी एकता नहीं होने दी।
आदर्शो का त्याग-
मराठों ने अपनी राष्ट्रीयता, सादगी और श्रेष्ठ आदशर् जिनके कारण वे इतने शक्तिशाली और
सफल बने थ,े कालान्तर में खो दिये। उन्होंने शिवाजी तथा प्रारंभिक पेशवाओं के श्रेष्ठ आद’रो को त्याग
दिया था। समानता, सादगी, कर्मठ, कर्त्तव्यनिष्ठा, उत्तरदायित्व की दृढ़ भावना, संयम और कठोर समर्पित
जीवन आदि गुणों ने उनको मुगलों के विरूद्ध सफलता प्रदान की थी। किन्तु अंगे्रजों से संघर्ष के युग
में वे अब इन गुणों को खा े चुके थे। सामतं वाद, जात पाँत, ऊँच नीच, की भावना और ब्राह्मण मराठा
विवाद से मराठा की राजनीतिक और सामाजिक एकता में दरारे पड़ गई।
सफल बने थ,े कालान्तर में खो दिये। उन्होंने शिवाजी तथा प्रारंभिक पेशवाओं के श्रेष्ठ आद’रो को त्याग
दिया था। समानता, सादगी, कर्मठ, कर्त्तव्यनिष्ठा, उत्तरदायित्व की दृढ़ भावना, संयम और कठोर समर्पित
जीवन आदि गुणों ने उनको मुगलों के विरूद्ध सफलता प्रदान की थी। किन्तु अंगे्रजों से संघर्ष के युग
में वे अब इन गुणों को खा े चुके थे। सामतं वाद, जात पाँत, ऊँच नीच, की भावना और ब्राह्मण मराठा
विवाद से मराठा की राजनीतिक और सामाजिक एकता में दरारे पड़ गई।
दोषपूर्ण सैन्य संगठन-
मराठों का सैन्य संगठन दूशित था। उनकी सेना में मराठा, राजपूत, पठान, रूहेले आदि विभिन्न
जातियों और संप्रदायों के सैनिक थे। इससे उनकी सेना में राष्ट्रीय भावना लुप्त हो गई। उनमें वह
शक्ति, सामर्थ्य और मनोबल नहीं था जो एक राष्ट्रीय सेना में होता है। मराठों के इन विविध सैनिक और
अधिकारियों में ईश्या और द्वेश विद्यमान था। इसलिये वे सामूहिक रूप से राष्ट्रीय भावना से युद्ध करने में
असमर्थ रहे। मराठों की सेना आधुनिक युरोपीयन ढग़ं से प्रशिक्षित थी। मराठों ने यूरोपीयन ढंग से अपने
अधिकारियों को प्रवीण नहीं करवाया था। अत: दूशित सैन्य संगठन भी उनके पतन का कारण बना।
जातियों और संप्रदायों के सैनिक थे। इससे उनकी सेना में राष्ट्रीय भावना लुप्त हो गई। उनमें वह
शक्ति, सामर्थ्य और मनोबल नहीं था जो एक राष्ट्रीय सेना में होता है। मराठों के इन विविध सैनिक और
अधिकारियों में ईश्या और द्वेश विद्यमान था। इसलिये वे सामूहिक रूप से राष्ट्रीय भावना से युद्ध करने में
असमर्थ रहे। मराठों की सेना आधुनिक युरोपीयन ढग़ं से प्रशिक्षित थी। मराठों ने यूरोपीयन ढंग से अपने
अधिकारियों को प्रवीण नहीं करवाया था। अत: दूशित सैन्य संगठन भी उनके पतन का कारण बना।
कुप्रशासन और दूशित अर्थव्यव्स्था-
शिवाजी के बाद के मराठा शासकों ने सुदृढ़ सुव्यवस्थित शासन की उपेक्षा की। उत्तरी भारत में
जिन उपजाऊ समृद्ध प्रान्तों को जीतकर मराठों ने अपना राज्य स्थापित किया था, वहाँ भी विजित
प्रद’े ाों को प्रत्यक्ष प्रशासन में संगठित करने, कृशि, उद्यागे , व्यापार को विकसित करने, प्रजा की भलाई,
सुरक्षा और प्रगति के लिये कोई प्रयत्न नहीं किया। उनके कर्मचारी प्रजा का शोशण और राजकीय धन
का गबन करते थे। धन की कमी से सैनिक पड़ोसी राज्यों में लूटपाट करते थे। ऐसा राज्य जो लूट के
धन या ऋण पर आश्रित हो, कभी स्थायी नहीं बन सकता, न उसका प्रशासन ठीक होगा न सेना। अत:
उसका पतन नि’िचत था।
जिन उपजाऊ समृद्ध प्रान्तों को जीतकर मराठों ने अपना राज्य स्थापित किया था, वहाँ भी विजित
प्रद’े ाों को प्रत्यक्ष प्रशासन में संगठित करने, कृशि, उद्यागे , व्यापार को विकसित करने, प्रजा की भलाई,
सुरक्षा और प्रगति के लिये कोई प्रयत्न नहीं किया। उनके कर्मचारी प्रजा का शोशण और राजकीय धन
का गबन करते थे। धन की कमी से सैनिक पड़ोसी राज्यों में लूटपाट करते थे। ऐसा राज्य जो लूट के
धन या ऋण पर आश्रित हो, कभी स्थायी नहीं बन सकता, न उसका प्रशासन ठीक होगा न सेना। अत:
उसका पतन नि’िचत था।
भारतीय राज्यो से शत्रुता-
अपने युग में मराठे देश की सर्वोच्च शिक्ता थे। अंग्रेजों से संघर्ष और युद्ध करने और उन्हें देश
से बाहर करने के लिए अन्य भारतीय राजाओं का सहयोग आव’यक था। पर मराठों ने उनसे मैत्री
सम्बन्ध स्थापित नहीं किये। यदि मराठों ने हैदरअली, टीपू और निजाम की समय पर सहायता की होती
तो वे अंगे्रजों की शिक्ता का अन्त करने में सफल हो जाते।
से बाहर करने के लिए अन्य भारतीय राजाओं का सहयोग आव’यक था। पर मराठों ने उनसे मैत्री
सम्बन्ध स्थापित नहीं किये। यदि मराठों ने हैदरअली, टीपू और निजाम की समय पर सहायता की होती
तो वे अंगे्रजों की शिक्ता का अन्त करने में सफल हो जाते।
अंग्रेजो की सार्वभौमिकता-
अंग्रेज राजनीतिक और सैनिक शक्ति मे, सैनिक संगठन और रणनीति मे, कुशल नेतृत्व और
कूटनीति में मराठों से अत्याधिक श्रेष्ठ थे। अंग्रेजों ने मराठा शासकों को अलग-अलग करके परास्त
किया। मराठों में व्याप्त वैमनस्य और गृह-कलह का लाभ अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से उठाया। मराठे
अंग्रेजों को कूटनीतिक चालों की न तो जानकारी ही रख सके और न उनको समझ सके।
अंग्रेजों की गुप्तचर व्यवस्था मराठों से श्रेष्ठ थी। अंग्रेज अपनी गुप्तचर व्यवस्था द्वारा मराठों कीवास्तविक सैन्य’’शक्ति, सैनिक और आर्थिक साधन, आंतरिक गृह-कलह एवं उनके सैनिक अभियानों की
पूर्ण जानकारी युद्ध करने के पूर्व ही ले लेते थे और इसका उपयोग वे मराठों को परास्त करने में करते
थे। जबकि मराठों की ऐसी कोई गुप्तचर व्यवस्था नहीं थी। अत: उसका परिणाम उनको भोगना पड़ा।
कूटनीति में मराठों से अत्याधिक श्रेष्ठ थे। अंग्रेजों ने मराठा शासकों को अलग-अलग करके परास्त
किया। मराठों में व्याप्त वैमनस्य और गृह-कलह का लाभ अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से उठाया। मराठे
अंग्रेजों को कूटनीतिक चालों की न तो जानकारी ही रख सके और न उनको समझ सके।
अंग्रेजों की गुप्तचर व्यवस्था मराठों से श्रेष्ठ थी। अंग्रेज अपनी गुप्तचर व्यवस्था द्वारा मराठों कीवास्तविक सैन्य’’शक्ति, सैनिक और आर्थिक साधन, आंतरिक गृह-कलह एवं उनके सैनिक अभियानों की
पूर्ण जानकारी युद्ध करने के पूर्व ही ले लेते थे और इसका उपयोग वे मराठों को परास्त करने में करते
थे। जबकि मराठों की ऐसी कोई गुप्तचर व्यवस्था नहीं थी। अत: उसका परिणाम उनको भोगना पड़ा।