माँ और शारदे माँ
माँ ने प्यारा जीवन देकर
धरा पर मुझे उतारा है।
मैं माटी का अनघड़ पुतला
तूने मुझे संवारा है।
माँ और शारदे माँ |
प्रथम पाठ माँ से सीखा है।
शब्दों का संसार दिया ।
बुद्धि देकर तूने माते।
अर्थों का आधार दिया।
संस्कार सीखे माता से।
प्रेम का मीठा ज्ञान मिला।
माँ तेरी अविरल धारा में।
विद्या का वरदान मिला।
माँ गर जीवन की गति है तो।
तुम सुरभित चेतन अस्तित्व।
माँ इस तन को देने वाली।
तुम वो पूर्ण अमित व्यक्तित्व।
जन्म हुआ भारत भूमि पर
देश प्रेम का मार्ग चुना।
माँ तेरे बल के ही कारण
शौर्य आत्म विश्वास बुना।
माता मेरी प्रथम गुरु हैं।
मातु शारदे रक्षक हैं।
माता है अमृत घट प्याला।
आप पाप की भक्षक हैं।
माता भावों की जननी हैं
शब्द समंदर आप भरें।
कृपा कटाक्ष से तेरे ही माँ।
हम सब सुंदर सृजन करें।
करे दूर अवगुण से माता
जीवन को आदर्श करे।
माँ तेरा चिंतन हम सबको।
जीवन विमल विमर्श करे।
त्याग की मूरत माता होती।
आप ज्ञान का सागर हैं।
माता अमृत का है प्याला।
आप अमिय की गागर हैं।
नहीं ऊऋण दोनों से हम हैं।
दोनों ज्ञान के रूप हैं।
नाम अलग दोनों के लेकिन।
दोनों ब्रह्म स्वरुप हैं।
– सुशील शर्मा