जन जन की भाषा हिंदी

जन जन की भाषा हिंदी


हिंदी
हिंदी का महत्त्व बताना तो सूरज को दीया दिखाने जैसा है। विश्व-भर में हिन्दी बोलने वालों की विशाल संख्या है। किन्तु हिन्दी को भारत में ही वह स्थान प्राप्त नहीं है जिसकी वह अधिकारी है। यह सच है कि तकनीकी क्रांति के युग में भाषाएँ अपना अस्तित्व खो रही हैं। क्षेत्रवाद भी पनप रहा है। इसके अतिरिक्त विदेशी भाषा अंग्रेज़ी के समक्ष, अपने ही देश में पराई सी हिन्दी को  अपना अस्तित्व बनाए रखना है। ऐसे में यदि हिन्दी अपना उदार-स्वरुप कुछ और निखार ले तो हिन्दी का कद और बढ़ जाएगा और उसके अस्तित्व को विस्तार मिल जाएगा। कुछ भाषाओं के शब्द हिन्दी में इस प्रकार घुल-मिल गए हैं कि अब ये हिन्दी के शब्द ही जान पड़ते हैं। ऐसे शब्दों को यदि हिन्दी अपना ले तो निश्चय ही इसकी ख्याति कई गुणा बढ़ जाएगी।
यदि हम प्रतिदिन बोली जाने वाली हिन्दी भाषा पर ध्यान दें तो पाएंगे कि उसमें बहुत से शब्द ऐसे हैं जो अन्य भाषाओं से आए हैं। इनमें से कुछ शब्दों के लिए तो अलग से हिन्दी शब्द हैं ही नहीं। इसके अतिरिक्त कुछ शब्दों के स्थान पर हिन्दी शब्दों का प्रयोग भाषा में अपनेपन के स्थान पर कृत्रिमता  का आभास देता है। एक वार्तालाप के माध्यम से यह बात स्पष्ट हो जाएगी।
स्थान –  एक घर    
समय-   सुबह के सात बजे 
पत्नी(पति से)- गुड मॉर्निंग…..चाय बन गई है। उठ जाइए। 
पति – ओह ! टाइम का पता नहीं लगा। अलार्म नहीं बजा आज? प्लीज़   एसी ऑफ कर देना।   
पत्नी-  लीजिये….न्यूज़पेपर भी आ गया। 
पति-   आज ऑफिस जल्दी जाना पड़ेगा। एक ज़रूरी मीटिंग है। मेरा तौलिया, बाथरूम में रख देना। शैंपू भी ख़त्म हो गया। 
पत्नी-  मैं ड्राईवर को भेजकर बाज़ार से मँगवा लेती हूँ। साबुन भी मंगवाना था। 
पति-  अरे, याद आया, तुम्हारी अपौइंटमैंट ले ली थी मैंने कल डेंटिस्ट से। अभी मोबाइल ऑन करके तुम्हें वट्सऐप पर आया मैसेज फॉरवर्ड कर देता हूँ। 
इस छोटे से वार्तालाप में पच्चीस शब्द ऐसे हैं जो हिंदीभाषा के नहीं हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जो हिन्दी में इस प्रकार रम गए हैं कि पकड़ में ही नहीं आते। इन शब्दों के लिए हिन्दी शब्द ढूँढने लगें तो वार्तालाप का रूप कुछ ऐसा होगा—
पत्नी(पति से)- सुप्रभात…..मीठा काढ़ा (चाय शब्द ‘चीनी’ भाषा का है) बन गया है। उठ जाइए।
पति- ओह ! समय का पता नहीं लगा। जगाने का यंत्र नहीं बजा आज?      कृपया वातानुकूलक बंद कर देना।
पत्नी- लीजिये…..समाचारपत्र भी आ गया।
पति- आज कार्यालय जल्दी जाना पड़ेगा। एक आवश्यक बैठक है। मेरा अंगोछा स्नानघर में रख देना। चांपों (शैम्पू शब्द चांपों से बना है जिसका अर्थ चंपी या तेलमालिश है।) भी समाप्त हो गया।
पत्नी- मैं चालक को भेजकर हाट से मँगवा लेती हूँ। फेनक भी मंगवाना था ।
पति- अरे, याद आया, तुम्हारे मिलने का निश्चित समय ले लिया था मैंने कल दंतचिकित्सक से। अभी चलंत दूरभाष यंत्र चालू कर तुम्हें वट्सऐप पर आया संदेश अग्रसारित कर देता हूँ।
उपरोक्त वार्तालाप में केवल हिन्दी के शब्दों का प्रयोग सहज प्रतीत नहीं हो रहा। अन्य भाषाओं से आए शब्द जैसे चाय, तौलिया, साबुन,ड्राईवर व बाज़ार आदि अब हिन्दी भाषा के शब्द ही प्रतीत होते हैं। तकनीकी विकास के साथ एसी, वट्सऐप व ईमेल जैसे शब्द हिन्दी भंडार का विस्तार कर रहे हैं। यदि हम गुड मॉर्निंग, अपौइंटमैंट व डेन्टिस्ट जैसे शब्दों को हिन्दी का भाग समझेंगे तो हिन्दी का विस्तार व विकास ही होगा, हानि नहीं। 
आज देश में 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु के लोगों की है। अधिकांश युवा इंग्लिश के प्रति आकृष्ट हैं। हिन्दी-भाषा में उनकी अधिकाधिक रुचि हो, इसके लिए हिन्दी माध्यम से दी जानेवाली जानकारी को तत्सम शब्दों की क्लिष्ट शब्दावली से भर देना उचित नहीं। इस प्रकार की शब्दावली युवा वर्ग को हिन्दी से दूर ले जाएगी। समाज के ऐसे वर्ग को हिन्दी-विरोधी न समझा जाए। हिन्दी के दुश्मन केवल वही माने जाने चाहिए जो अपने विद्यालयों में हिन्दी बोलने वाले छात्रों पर जुर्माना लगाते हैं। किसी भाषा का परिष्कृत होना अपने आप में अहम है, किन्तु यदि वह रूप केवल कुछ लोगों तक ही सीमित रह जाए तो निश्चय ही यह चिंता का विषय होगा। 
मीडिया ने हिन्दी को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका अदा की है। कुछ लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाओं, हिन्दी धारावाहिक (विशेषकर हास्यपूर्ण  व ज्ञानवर्धक) व फिल्मों ने हिन्दी को आम व्यक्ति से जोड़कर रखा है। विश्व की प्रगतिशील अर्थव्यवस्था में भी मीडिया की भागीदारी बेहद खास है। पूंजीवादी देश, हमारे देश भारत में एक बड़ा बाज़ार देखते हैं और यहाँ के आम लोगों तक पहुँचना चाहते है। ऐसे में जब उन्हें विज्ञापन का सहारा लेना पड़ता है तो विदेशी कंपनियों के विज्ञापन हिन्दी में खूब होते हैं। 
     समय के साथ आवश्यकताओं में परिवर्तन आता है। इंटरनेट आज सूचनाओं के आदान-प्रदान का सशक्त व सरल माध्यम बन गया है। यही कारण है कि हिन्दी में मंगल और यूनिकोड जैसे फोंट्स के द्वारा हिन्दी अब इन्टरनेट की भाषा बन पाई है। हिन्दी के विकास के इस आधुनिक स्वरूप से हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल दिखाई दे रहा है। ऐसे में अन्य भाषाओं के शब्द अपने में सम्मिलित कर हिन्दी का स्वरूप प्रगति की एक नई दिशा तय करता दिखाई देगा।  
किसी भी भाषा की समृद्धि के लिए आवश्यक है कि वह उदार हो, अन्य भाषाओं के शब्द निःसंकोच ग्रहण करे। इसी राह पर चलकर ही हिन्दी- भाषा लोकप्रिय बन सकती है। जब कोई भाषा आम लोगों की भाषा बन जाएगी तो निश्चय ही उसका जीवन-काल लंबा होगा। अतः इंग्लिश के वे शब्द जो हमारे समान्य जीवन में रच-बस गए हैं, वे अब हिन्दी में समाकर उसका हिस्सा बन जाएँ तो कुछ गलत नहीं है। अंग्रेज़ी ने भी हमारे कई शब्दों को ग्रहण किया है । ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में भेलपूरी, मसाला, चटनी, चूड़ीदार अइयो,ढाबा,चना व चनादाल शामिल हैं। जंगल, अवतार ,चीता व गुरु जैसे शब्द भी अंग्रेज़ी का हिस्सा हैं। हाँ इस बात का ध्यान अवश्य रहना चाहिए कि वे शब्द इतने ज़्यादा न हो जाएँ कि अपनी भाषा पराई लगने लगे। इसके अतिरिक्त व्याकरण के नियमों का भी ध्यान रखना चाहिए अन्यथा भाषा अपना मूल अस्तित्व खो देगी। 
विभिन्न विद्वानों द्वारा अलंकृत व सुंदर शब्दों से सुसज्जित साहित्य निश्चय ही हिन्दी भाषा की अमूल्य निधि हैं । किन्तु हिन्दी को यदि जन-जन की भाषा बनाना है तो अन्य भाषाओं के प्रति उदारता आवश्यक है। 
नोट- प्रस्तुत लेख में प्रस्तुत विचारों से यदि किसी को ठेस पहुँची हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।       
– मधु शर्मा कटिहा

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