ये धरती है बलिदानों की
उठा लिया बीड़ा धरती ,
के संतान ये सारे ।
अब चुप कर ना बैठ सके ,
कोई हिंसक अंगारे ।
ये धरती है बलिदानों की ।
ये धरती है किसानों की ।
ये धरती बीर जबानों की ।
ये धरती धर्म दिबानों की ।
ऋषि मुनि ने जप – तप से ,
धरती को स्वर्ग बनाया ।
सत्य अहिंसा धर्म – कर्म से ,
इसको खूब सजाया ।
सोने की चिङियां धरती को ,
भारत मे कहाया ।
ज्ञान उदय करने बाला ,
भारत को गुरु बनाया ।
आज वही अब , फिर से हम ।
अपना धर्म निभायेंगे ।
जल्लादो को जला- जला ।
कर अंधकार भगायेंगे ।
रहे कहीं न कभी अंधेरा ।
हम नया सबेरा लायेंगे ।
जिसे देखकर दंग रहे सब ,
हम ऐसा भारत बनायेंगे ।
हम ऐसा भारत बनायेंगे ।
बंद करो , दहेज समाज से
बंद करो , दहेज समाज से ।
है बद्धाञ्जिली , विनय आपसे ।।
हे तात ! सुनो मेरा संदेश ।
मत सोचो , ये है आदेश ।।
आप पिता , धनवान बङे ।
हिरा सभी , संतान तेरे ।।
फिर कमी , किस चिज की ।
शैलेश कुमार |
जो ” रस्म बनायें , दहेज की ।।
दहेज विना , क्यूं वहु ना लाते ?
पाकर दहेज ! क्यूं हो इतराते ?
क्यूं ? राजा बनकर , बने भिखारी ।
डूब लालच मे , दहज पुजारी ।।
स्वच्छ – सुन्दर हुआ, मलिन समाज ।
लालच मे बिकता, बेटा आज ।।
हे पूज्यगन! क्यूं धर्म को खोये ?
घर क्यूं बीज ?अधर्म का बोये ।।
मान्यवर ! सुन लो , एक -बार ।
बंद करो , ये अत्याचार ।।
अतीत मे हुआ , ना ऐसा कभी ?
परम्परा , फिर कैसे चली ?
ये ” तुच्छ , ज्ञान की भाती है ।
मुर्खता से , हमे चबाती है ।।
हर बार मेरे, घर मांँ रोती ।
जब” रिस्ते , टूटकर जाती है ।।
ना ” करुणा , उर मे जगती है !
ना ” आंसू , नैनो से बहती है !!
इतने ” निर्दय है , पुत्र पिता !
कहते, सांसे भी , रुक पङती है !!
हमने सुना , पत्थर भी रोता !
जब उसके , समीप कोई रोता !!
फिर आप , किस पत्थर की बने ?
जो ” कभी दर्द , नहीं आपको होता !!
इस दहेज को , जला भी डालो ।
जिसने जलाया , संसार है ।।
सुन्दर सुखमय , आनंद का जीवन !
अलग किया , परिवार है ।।
सबको रुलाया , इस दहेज ने !
सबको बहकाया , इस दहेज ने !!
बो पापी , दुष्कर्मी होगा ।
जिसने बनाया इस दहेज ने ।।