पेट की जीत

पेट की जीत

पेट की जीत एक दिन की बात है। हाथ ने कहा ,”मैं दिन भर काम करते करते थक जाता हूँ जबकि यह पेट खा पीकर मस्त पड़ा रहता है।”
यह सुनकर पैर बोला ,”सही कहते हो भैया ,यही हाल तो अपना भी है। दिन भर डोलते -डोलते ,खड़े खड़े ,बैठे बैठे थक के चूर हो जाता हूँ और यह पेट है की हरदम आनंद से रहता है। “
शरीर
शरीर
आँख ने कहा ,” अरे भैया ,यह पेट तो बहुत चालाक है। यह तो हरदम बैठकर खाता है। हम लोगों का तो काम कर कर के बुरा हाल है। “
तब नाक ने भी हाँ में हाँ मिलायी ,”बिलकुल ठीक कहा भैया आपने। यह पेट चतुर ही नहीं महाचतुर है और हम लोग मुर्ख। “
इस तरह से सभी लोगों ने पेट को खूब ताने दिए। 
बेचारा पेट सबकी बात सुन रहा था। जब सबने कह लिया तब उसने कहा ,”आप लोग मेरी चिंता छोड़ दीजिये और आप लोगों को जो अच्छा लगे वह कीजिये। 
इस बात से सब और गुस्से में हो गए। अपना अपना काम छोड़कर बैठ गए। इस तरह से जब कई दिन बीते तो सबकी हालत गंभीर हो गयी। 
होती भी क्यों न ? शरीर में अन्न ,जल कुछ आ ही नहीं रहा था। सीधी से बात है जब कोई काम ही नहीं करेगा तो आएगा कहाँ से ? जब सबने देखा कि अगर अब हम काम नहीं करेंगे तो हमारे प्राण निकल जायेंगे। अंत में सब पेट के आगे हार मानकर अपने अपने कामों में जुट गए जिससे सब की हालत धीरे धीरे सुधर गयी। 

कहानी से शिक्षा – 
  • सबका अपना-अपना महत्व होता है। 
  • हर काम, हर कोई नहीं कर सकता है ,जो जिसके लिए बना है ,वही करना चाहिए। 

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