मंगला गौरी व्रत पूजन एवं उद्यापन विधि

मंगला गौरी व्रत पूजन एवं उद्यापन विधि 

मंगला गौरी व्रत पूजन एवं उद्यापन विधि Mangla Gauri Vrat Vidhi मंगला गौरी पूजा व्रत कथा मंत्र व उद्यापन विधि Mangla Gauri puja vrat mahatv katha mantra udyapan vidhi in hindi –श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार को शिवजी की विशेष पूजा तो की ही जाती है ,प्रत्येक मंगलवार को पार्वती जी की विशिष्ट पूजा का भी शाश्त्रीय विधान है। गौरी पार्वतीजी का ही एक नाम है और प्रत्येक मंगलवार को यह पूजा की जाती है। यही कारण है कि इसे मंगलागौरी व्रत कहते हैं। प्रायः महिलाएँ ही अधिक करती है पार्वती जी की यह पूजा और उनके निमित्त व्रत। 

मंगलागौरी व्रत की विधि – 

मंगला गौरी व्रत पूजन एवं उद्यापन विधि
शास्त्रीय विधान तो श्रावण मास में प्रतिदिन यह पूजा और व्रत करने का है ,वैसे अधिकांश महिलाएँ प्रत्येक मंगलवार को ही करती है गौरी जी अर्थात पार्वतीजी की यह पूजा और व्रत। मंदिर में जाने के स्थान पर घर पर ही की जाती है यह पूजा। प्रातःकाल नहा कर पवित्र होकर एक चौकी पर एक श्वेत और दूसरा लाल कपड़ा बिछाइये। सफ़ेद कपड़े पर नव ग्रहों के रूप में चावल की नौ ढेरियाँ बनायें। इसी प्रकार लाल कपडे पर षोडश माता के रूप में गेंहूँ की सोलह ढेरियाँ बनायें। चौकी पर एक तरफ चावल व फुल रखकर गणेश जी की स्थापना करें। चौकी के समीप गेहूं रखकर उनके ऊपर कलश स्थापित करें। फिर आटे का चौमुखा दीपक बनाकर जलाएं। अंत में मंगला गौरी की मिट्टी की प्रतिमा बनाएँ अथवा मिट्टी की पांच डलियाँ रखकर उन्हें गौरी मान लें। उनको स्नान कराकर वस्त्र अर्पण करें। फिर रोली ,चन्दन ,सिंदूर ,काजल ,मेहन्दी लगाकर श्रृंगार करें। इसके बाद जल ,रोली ,मोली ,चन्दन ,पान ,सुपारी ,फल,फूल आदि से सबकी पूजा करें। पूजा के बाद सोलह प्रकार के फूल ,सोलह मालाएँ ,सोलह प्रकार के पत्ते ,सोलह आटे के लड्डू ,सोलह फल ,सोलह बार पञ्च मेवा ,लौंग ,शीशा ,कंघी व सोलह चूड़ियाँ आदि चढ़ाएं।इसके बाद दक्षिना चढ़ाकर मंगला गौरी की कथा सुनाएँ।फिर सोलह लड्डूओं का बायना अपनी सास को देकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। इतना करके स्वयं भोजन करें। एक ही अनाज की रोटी खाएँ और नमक न खाएं। अलगे दिन गौरी को समीप के कुएँ ,तालाब अथवा नदी में विसर्जित किया जाता है। 

पार्वती जी की आरती

जय पार्वती माता जय पार्वती माता
ब्रह्मा सनातन देवी शुभफल की दाता ।।
अरिकुलापदम बिनासनी जय सेवक्त्राता,
जगजीवन जगदंबा हरिहर गुणगाता ।।
सिंह को बाहन साजे कुण्डल हैं साथा,
देबबंधु जस गावत नृत्य करा ताथा ।।
सतयुगरूपशील अतिसुन्दर नामसतीकहलाता,
हेमाचल घर जन्मी सखियन संग राता ।।
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमाचल स्थाता,
सहस्त्र भुजा धरिके चक्र लियो हाथा ।।
सृष्टिरूप तुही है जननी शिव संगरंग राता,
नन्दी भृंगी बीन लही है हाथन मद माता ।।
देवन अरज करत तब चित को लाता,
गावन दे दे ताली मन में रंगराता ।।
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता ,
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता ।।


मंगलागौरी व्रत उद्यापन – 

चार पाँच वर्ष में सावन के सोलह अथवा बीस मंगलवारों तक व्रत करने के बाद इसका उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन के दिन कुछ नहीं खाना चाहिए। पंडितों द्वारा विधिपूर्वक पूजन करा हवन कराएँ तथा कथा सुनें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएँ तथा दान दक्षिना दें। अपनी सास को सुहाग पिटारी ,साड़ी और नकद रुपयें पैर छूकर दें। फिर सभी को भोजन कराकर अंत में स्वयं भोजन करें। 

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