वो चोरों का डाकूओं का तरफ़दार बन गया
वो प्यासा था समंदर का तलबगार बन गया,
अच्छा आदमी होकर भी गुनहगार बन गया।
बनना था जिस शख़्स को इंसाफ़ का रहबर,
वो चोरों का, डाकूओं का तरफ़दार बन गया।
उसे मालूम नहीं बिल्कुल अच्छे बुरे का फ़र्क,
लेकिन अपनों के सामने समझदार बन गया।
वो तो पत्थर था और भी वजनदार बन गया।
क्या करना है उस शख़्स की अक़्ल नापकर,
थानेदार था जो कल तक हवलदार बन गया।
जो घूमकर चला आया मदरसे के आसपास,
वो शख्स भी महफ़िल में असरदार बन गया।
मेरी हसरतें थी बदनसीब, मिट्टी में चली गई,
वो सितारा था आस्मां में चमकदार बन गया।
जो कुछ नहीं था उसको, खुशबू मिली मगर,
जो सब कुछ था कांटों का हक़दार बन गया।
ज़फ़र डरा नहीं सच को सच कह दिया मगर,
लहज़ा तमाम ग़ज़लों का नमकदार बन गया।
ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ-413,
कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-32
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