सच्ची चोरी

सच्ची चोरी

“हे कान्हा हे हरि अविनाशी
जहां – तहां के घट -घट वासी।
खींची जाए प्रेम की डोरी
कर लूं मै तो सच्ची चोरी।
ये कहानी है सोलहवीं शताब्दी की ।एक बार एक चोर था जो कई आभूषणों की चोरी करता था।वो बहुत भोला -भाला दिखता था।उसकी कमजोरी थीं अशिक्षा व गरीबी। उस चोर का नाम था फाल्गुनी जो कि कृष्ण भगवान् के प्रिय मित्र अर्जुन का एक नाम था।
फाल्गुनी जो कि चोर तो था ही साथ – साथ एक दानवीर भी था, वह अकिंचन जनों की सेवा करता था।लेकिन भगवान का नाम सुनना उसको अच्छा नहीं लगता था।
कृष्ण भगवान
कृष्ण भगवान
एक बार कहीं पर भागवत कथा चल रही थी वह वहां पर एक व्यास थे, वे कृष्ण के बाल लीलाओं का वर्णन कर रहे थे। अचानक वहां पर वह चोर आ गया उसने भी कहानी सुनी लेकिन वह तो नास्तिक था।उसने अपने कान बंद कर लिए। जैसे ही उसने अपने कान खोलें वैसे ही व्यास के मुख से कुछ शब्द निकले जो इस प्रकार थे –
“मोर – मुकुट छवि देखी है
मिलता नहीं है चैन।
शावरे को मिलने को
मेरा दिल बेचैन।”
देखो भक्तों कृष्ण भगवान जब छोटे थे तब उनके पास अनमोल रत्न थे, जैसे हाथो में स्वर्ण आभूषण थे कई मणि सुसज्जित थे। उस चोर ने ये ही सुना था ।जब  व्यास कहानी  के अंत में अकेले घूम रहे थे तो राह में उनको वह चोर मिला  उसने पूछा कि
“व्यास जी क्या ये बात सही है ?
व्यास जी ने कहा -कौन सी बात?
चोर ने कहा – कृष्ण भगवान् के आभूषण…।
व्यास ने कहा -“हां सत् प्रतिशत सत्य।
चोर ने कहा -“फिर उसका पता बता दो।व्यास जी ने तो उस चोर से अपना पीछा छुड़ाना था उन्होंने उसे गोकुल का पता बता दिया।
फाल्गुनी ने गोकुल कि तैयारी कर ली उसने कहा –
“कई किए थे चोरियां,
वो थी थोड़ी -थोड़ी।
आज करूंगा चोरियां
माखन चोर की चोरी”
फाल्गुनी ने गोकुल  में जाने के लिए काफी संघर्ष किया, कई दिवस व्यतीत हो गए।वह भूखा – प्यासा गया लेकिन वह तो मूर्ख हुआ।
जब गोकुल में ब्रह्म मुहूर्त का समय आया तो कृष्ण भगवान अपने ग्वाल-बाल साखाओं के साथ दिखाई दिए। उनके दर्शन पाकर तो वह एक सज्जन व्यक्ति बन गया।कृष्ण  बोले -“हे मेरे प्रिय मित्र फाल्गुनी लो मेरे आभूषण , तुमने तो मेरे दिल की चोरी कर दी। उसके सारे पाप धुल गए।
वह अपने गांव पहुंच गया और वे व्यास से भी मिला तथा अपना सारा वृतांत उन्हें सुनाया ,उनको वो आभूषण भी दिखाए जो उन्होंने कहे थे।उन्होंने कृष्ण की दर्शन की बात कही तो फाल्गुनी ने कृष्ण भगवान् को दिल से पुकारा ,कृष्ण ने व्यास को भी दर्शन दिखाए।बाद में वो व्यास उस फाल्गुनी के शिष्य बन गए।
कृष्ण नाम का पारस बनकर 
कर दो आज उपकार।
तेरे नाम की चोरी करके
जन – जन का उद्धार।
– नरेंद्र भाकुनी
एम ए हिंदी, एम ए इतिहास

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