मां मुनि और पिता ऋषि जैसे होते हैं

मां मुनि और पिता ऋषि जैसे होते हैं


मां और पिता कैसे होते?
अक्सरा समझ में हेर-फेर हो जाता
जैसे ऋषि और मुनि को समझने में!
मेरी समझ से मां मुनि जैसा होती
और पिता ऋषि जैसे होते हैं
अक्सरा मां मुनि की तरह मौन रहती

मां मुनि और पिता ऋषि जैसे होते हैं

पिता ऋषि की तरह रिसियाते,
खिसियाते रहते जब-तब मां पर!
गुस्सा तो पिता के नाक पे होता 
ऋषि दुर्वासा की तरह हमेशा
मां काफी मनन के बाद 
मुनि की तरह मौन तोड़ती 
बेटा को आड़ लेकर बोलती
अक्सरा मुस्कुरा कर चिढ़ाकर
‘काना कुकूर बतासे भुकूर’
और फट पड़ते पिता लोकोक्ति पर
क्रोधी ऋषि सा मां मुनि पर
वैसे ऋषि और मुनि की तरह 
मुश्किल है कह पाना
कि कौन पहले आए हैं
माता याकि पिता
इतना तो प्रकृति से तय है 
कि माता अवैदिक मुनि जाति है
जबकि पिता वैदिक ऋषि की तरह 
गुस्सैल जपी तपी उद्योगी परम्परा के
वैसे बेशक दोनों ही स्वायंभुव मनु 
और शतरुपा से निकले हैं
चाहें तो आप मां को आगम
और पिता को निगम परम्परा से
निसृत मानव जाति कह सकते हैं!
मां मुनि मौन अहिंसक मुख पर
पट्टी बांधे जैन साध्वी सी
‘मनसा वांचा कर्मणा’ दया ममता
करुणा की साक्षात मूर्ति होती!
पिता वैदिक ऋषि तपस्वी
शस्त्र अनुसंधानी, शास्त्र ज्ञानी,
अपनी संतति हेतु सन्मति,
सम्मति,सद्गति, संपत्ति, सुरक्षा
सफलता प्रदायी वरद प्राणी!

– विनय कुमार विनायक

दुमका, झारखण्ड-814101

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