कोरोना का कहर – हिन्दी कविता
गालियां सूनी,
सड़के सूनी,
सूनें सब चौराहें,
फिर भी,
आहट आये,
चुपके,चुपके,
मास्क लगाये बिना,
दूरी आपस में बनाए बिना,
कोई भी,
रोड पर,
ना निकले ।
कौन है वो,
अमिट ममता के लाल,
संदेश सहायता का डाल,
सब को सुरक्षित कर घर में,
बने हुये हैं सब की ढाल ।
जीवन-सत्य,
सिमट रहा है।
अपनी-अपनी,
करनी में।।
वक़्त भयंकर से भी भयंकर,
बन रहा है,
अपनी-अपनी,
नासमझी में,
सूने,सूने सब हो जायेंगे,
झोपड़ी से महलों तक,
रुक जाओ,
थम जाओ,
बैठ जाओ,
वरना सो जाओगे,
आने-जाने मे,
बाहर से बाहर,
हो जाओगे,
वक़्त है अभी,
जीने का,
और
मरने का,
कोई भी,
रोड पर,
ना निकले,
बिना किसी काम,
गलियां,सड़कें और चोराहें,
घर,आंगन सूना करने को………..
डॉ. अनिल मीणा (व्याख्याता -हिन्दी)
मोबाईल नम्बर्-7891164635
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,कालाकोट(छोटी सादरी),
प्रतापगढ़(राजस्थान)