चाँद निकले किसी जानिब/फैज़ अहमद फैज़

फैज़ अहमद फैज़

चाँद निकले किसी जानिब तेरी ज़ेबाई का
रंग बदले किसी सूरत शबे-तन्हाई का

दौलते-लब से फिर ऐ ख़ुसरवे-शीरींदहनां
आज अरज़ा हो कोई हर्फ़ शनासाई का

दीदा-ओ-दिल को संभालो कि सरे-शामे-फ़िराक़
साज़-ओ-सामान बहम पहुँचा है रुस्वाई का

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