समय की ये कैसी माया है
समय की ये कैसी माया है
हर कोई इसकी चक्की में पिसता आया है
कैसा ये दौर आया है
अपना अपने से कतराया है
तन मन से मिलने को घबराया है
अंदर बाहर खूब शोर मचाया है
पर अफसोस इसे कोई ना सुन पाया है
अंदर रहो तो मन घबराया है
बाहर निकलो तो तन चरमराया है
जीव जंतु बने हमारे दुश्मन
हम ने भी तो उन पर कहर बरपाया है
सोच समझने की शक्ति को क्या खूब भुनाया है
मुखोटे पर एक और मुखौटा लगाया है
सहेजा ना जो अभी भी हम ने
प्रकृति ने भी ये मंजर यूं ही नहीं दिखाया है
करते जो निर्वाह सु भावना से
ये दुर्भावना से उसने हमे हराया है
या खुदा रहम कर
तेरी भावना से ही हर एक
शक्स बच पाया है
हर एक श्क्स बच पाया है
बीत जायेगा ये मुश्किलों का दौर
हर एक तूफान के बाद मंजिलों का दौर आया है
– सोनिया