भ्रष्टाचार – महेन्द्र भटनागर

गाजर घास-सा

चारों तरफ़
क्या खूब फैला है !
देश को हर क्षण
पतन के गर्त में
गहरे ढकेला है,
करोड़ों के
बहुमूल्य जीवन से
क्रूर वहशी
खेल खेला है !

वर्जित गलित
व्यवहार है,
दूषित भ्रष्ट
आचार है।

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