सम्पूर्ण सच… एक तबाही

सम्पूर्ण सच… एक तबाही

अभी रिश्ता कुछ नया सा था
बेहद नाज़ुक ,
बिल्कुल नवजात शिशु के समान
जो भरा था उल्लास और उत्सुकता से
मन भी तूफ़ान सा उथल पुथल होकर इधर उधर फिर रहा था …
नए रिश्ते में कितना कुछ होता है  बताने ,जताने और कुबूल करने को 
पर, कुबूल सिर्फ उतना किया जाना चाहिए
जो बचाए रखे नवजात रिश्ते को …
दिल के सबसे करीब बनता जा रहा था वो रिश्ता
कह डाली उसे जिंदगी की सारी हक़ीक़त 
कर लिए वो सारे गुनाह क़ुबूल जो किये थे जाने-अनजाने में…
पर अब भी बाक़ी था कुछ कहने को 
जो क़ुबूल किया जाना चाहिए था
बोझिल मन को हल्का करने के लिए…
गुनाह सिर्फ इतना था 
अन्नू साह अनुपम
अन्नू साह अनुपम
इससे पहले रिश्ते के साथ शारिरिक सम्बन्ध
जो कर रहा था मन को कुंठित 
डर पैदा कर रहा था 
नए रिश्ते में अस्वीकार होने से…
पर अफसोस कि
कुछ कुबुलनामे माफ़ी के हक़दार नही हुआ करते 
वो सिर्फ होते हैं चुभने के लिए 
जिसकी खाँच चुभती है भीतर तक …
कुछ छुपे हुए राज डराते हैं काले साए की तरह 
रोशनी में भी अपनी रंगहीनता से
कुछ सच पीछा करते हैं भीड़ में भी 
कुछ सच ले लेते हैं प्राण 
सांस लेने भर से भी…
कुछ सच बचते हैं सामने आने से 
कंपकपाते हैं रिश्ते की कोमलता के बिखरने से
डरते हैं रिश्ते का गलाघोटने का कारण बन जाने से
भागते हैं सच का सामना करने से …
पर जब पाई पाई हिम्मत जुटा कर
किया जाता है सच कुबूल 
कंपकपाते और लड़खड़ाते होंठो से
और उगल दिया जाता है 
तमाम गुनाह और गलतियां …
फिर सच की चिंगारी 
धर लेती हैं भयंकर रूप आग का 
और कर देती हैं भस्म 
अच्छे खासे रिश्ते को 
अपनी धधकती आग में…
सच कतई गलत नहीं होता 
पर सम्पूर्ण सच ला देता कई बार रिश्तों में प्रलय
हम झूठ के पक्षधर नहीं
हम पक्षधर हैं …
“कुछ सच गोपनीय रखने के”

– अन्नू साह अनुपम

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