सरस्वती पूजा पर कविता
मैं तुमसे प्रसन्न हूँ
मैं तुमसे प्रसन्न हूँ
तभी तो तुम्हें ‘लेखनी ‘ दी है ।
अब उस पर स्वामित्व तेरा है ।
हे प्रबुद्ध जन, तुमसे एक अनुरोध मेरा है ।
‘ बोली ‘ से कभी न हिंसा करना ।
‘ लेखनी ‘ से कभी न हिंसा करना ।
मर्यादित ‘बोली’ मर्यादित ‘ रचना ‘
यही है मेरी सच्ची आराधना ।
यही है वास्तविक सरस्वती पूजा ।
इससे इतर इसका अर्थ न दूजा ।
– मधु मिश्र