इतने ऊँचे उठो द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
इतने ऊँचे उठो कविता का अर्थ व्याख्या
इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से,
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से |
जाति-भेद की, धर्म-वेश की
काले-गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के द्वारा रचित कविता इतने ऊँचे उठो से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से समाज में व्याप्त समस्त भेदभावों से ऊँचा उठकर समाज में समानता का भाव जगाने पर बल दिया गया है | इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहते हैं कि जिस प्रकार वर्षा सभी के ऊपर समान रूप से होती है, उसी प्रकार हमें भी सभी के साथ समान रूप से व्यवहार करना चाहिए | हमें राष्ट्र निर्माण में नई सोच के साथ आगे आना चाहिए और विभिन्न प्रकार के भेदभावों से ऊपर उठकर सभी को समता की दृष्टि से देखना चाहिए |
कवि कहते हैं कि ये जो घृणा की ज्वाला से संसार तप रहा है, हमें इसे ख़त्म कर समाज में मलय पर्वत से आने वाली शीतल हवा की तरह शीतलता और शांति लाने का प्रयास करना चाहिए |
नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो |
नये राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नयी मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के द्वारा रचित कविता इतने ऊँचे उठो से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से समाज में व्याप्त समस्त भेदभावों से ऊँचा उठकर समाज में समानता का भाव जगाने पर बल दिया गया है | इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहते हैं कि हमें नव-समाज निर्माण का संकल्प लेकर अपनी कल्पनाओं व कौशलों को वास्तविक जीवन में लाने का प्रयास करना चाहिए |
कवि कहते हैं कि कभी अपनी कलाकारी का प्रदर्शन दिखाते हुए अपनी कूँची से अपने चित्रों में रंग भरो, कभी संगीतकार की भूमिका में अपने नए राग को नूतन स्वर दो, कभी भाषा को नए-नए अक्षरों से अभिभूत कर दो | जिस प्रकार एक मूर्ति को जीवंत बनाने के लिए हम अपने कौशलों का इस्तेमाल करके उसे सुंदर प्रतिरूप देते हैं, ठीक उसी प्रकार अपने समाज को भी नया रूप देने के लिए सृजनात्मक बनना जरूरी है | बल्कि इस सृजनात्मकता को हमें आत्मसात करके अपने अंदर मौलिकता को जन्म देना होगा |
लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है |
तोड़ो बन्धन, रुके न चिंतन
गति, जीवन का सत्य चिरन्तन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के द्वारा रचित कविता इतने ऊँचे उठो से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से समाज में व्याप्त समस्त भेदभावों से ऊँचा उठकर समाज में समानता का भाव जगाने पर बल दिया गया है | इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहते हैं कि हमें अपने अतीत से केवल अच्छी घटनाओं अथवा यादों को अभिग्रहण करना चाहिए, क्योंकि ये सकारात्मक बातें ही हमें भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध होंगी | जबकि बुरी घटनाएँ हमें सदा पीछे की ओर ले जाती हैं | इनसे हमारा विकास में बाधा उत्पन्न होगा | कवि कहते हैं कि हर नकारात्मक बंधनों को तोड़कर हमेशा अपने जीवन पथ पर अग्रसर रहो | क्योंकि गति और परिवर्तन ही जीवन का शाश्वत सत्य है |
चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना |
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के द्वारा रचित कविता इतने ऊँचे उठो से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से समाज में व्याप्त समस्त भेदभावों से ऊँचा उठकर समाज में समानता का भाव जगाने पर बल दिया गया है | इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहते हैं कि यदि हम इस धरती को स्वर्ग बनाना चाहते हैं तो हमें अपनी कल्पनाओं मूर्त रूप देने और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए | हम हर तरह की बुराईयों का त्याग करके ही एक सुंदर समाज का नींव मजबूती से रख सकते हैं | कवि का मानना है कि हमारे इस नेक काम में हमारे साथ सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे इत्यादि हर पल साथ हैं | कवि कहते हैं कि जिस प्रकार किसी आकर्षक चीज़ों की तरफ हम खींचे चले जाते हैं, ठीक उसी प्रकार हमें भी आकर्षण का केन्द्र बनना चाहिए |
इतने ऊँचे उठो कविता का सारांश
प्रस्तुत पाठ या कविता इतने ऊँचे उठो ,कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के द्वारा रचित है | इस कविता के माध्यम से कवि समाज में सौहार्दपूर्ण रिश्ते की स्थापना पर बल देते हैं | प्रस्तुत कविता जाति-धर्म, रंग-भेद जैसी रूढ़ीवादी परम्पराओं के बंधनों से निकलकर नवीन मौलिक विचारों को अपनाने के प्रयास करने की बात करती है | मतलब ऐसे विचार जो समाज को अतीत की परछाईयों से निकालकर वर्तमान के उजाले की ओर ले जा सके | जिन विचारों के प्रस्फुटन से इस धरा का पुनर्निर्माण हो और वह स्वर्ग के समान सुंदर बन जाए…||
इतने ऊँचे उठो कविता के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 संसार किन ज्वालाओं में जल रहा है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता के अनुसार, संसार जाति-भेद, धर्म-वेश और रंग द्वेष की ज्वालाओं में जल रहा है |
प्रश्न-2 कविता में किन बंधनों को तोड़ने की बात की गई है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता में पुरानी रूढ़ीवादी परम्पराओं को तोड़ने की बात की गई है |
प्रश्न-3 युग की नई मूर्ति-रचना का क्या अर्थ है ?
उत्तर- युग की नई मूर्ति-रचना का अर्थ है युग का पुनर्निर्माण |
प्रश्न-4 ज्वालाओं से जलते जग में मलय पवन की तरह बहने का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता के अनुसार, ज्वालाओं से जलते जग में मलय पवन की तरह बहने का तात्पर्य है कि जिस प्रकार मंद-मंद बहने वाली शीतल हवा तपन को शांत करती है, ठीक उसी प्रकार हम भी नए प्रगतिशील विचारों के शीतल झोंकों से जाति-भेद, रंग-द्वेष, धर्म-वेश जैसी रूढ़ीवादी परम्पराओं की तपन से झुलसे समाज को शीतलता प्रदान करें |
प्रश्न-5 कवि अतीत से किस पोषक को लेने की बात कह रहा है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता के अनुसार, कवि अतीत से उस पोषक को लेने की बात कह रहा है, जो हमारी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा हुआ है और जो हमारी प्रगति में सहायक है |
घ. समाज में परिवर्तन कैसे आएगा ?
प्रश्न-6 सही उत्तर पर √ लगाइए —
(क)- नूतन स्वर किसे देने की बात कही गई है ?
उत्तर- नए राग को
(ख)- जीवन का चिरंतन सत्य क्या है ?
उत्तर- गति
(ग)- कविता का मुख्य भाव है —
उत्तर- उपर्युक्त सभी
प्रश्न-7 दिए गए शब्दों के पर्यायवाची, कविता में से चुनकर लिखिए –
• धरा — धरती
• आकाश — गगन
• संसार — दुनिया
• वायु — पवन
• ठंडा — शीतल
• वर्षा — वृष्टि
प्रश्न-8 विलोम शब्द लिखिए —
उ. उत्तर निम्नलिखित है –
• कुरूप — सुरूप
• आकर्षण — विकर्षण
• नूतन — पुरातन
• जीवन — मृत्यु
• समता — विषमता
• वर्तमान — अतीत
• मौलिक — कृत्रिम
प्रश्न-9 कविता में आए तुकांत शब्द चुनकर लिखिए –
उ. उत्तर निम्नलिखित है –
• दृष्टि-वृष्टि
• सँवारो-उभारो
• पोषक-द्योतक
• बनाना-लाना
• वेष-द्वेष
• स्वर-अक्षर
• चिंतन-चिरंतन
• तारे-हमारे
उ. उत्तर निम्नलिखित है –
• सूरज — सूर्य
• चाँद — चंद्रमा
• ऊँचा — उच्च
• हाथ — हस्त
• दुनिया — विश्व
• गाँव — ग्राम
प्रश्न-11 दिए गए शब्दों से विशेषण बनाइए –
• चिंतन — चिंतित
• प्रवाह — रचित
• स्वर्ग — स्वर्गीय
• आकर्षण — आकर्षित
• रचना — रचित
• गति — गतिशील
प्रश्न-12 इन संज्ञा शब्दों के लिए आए विशेषण कविता से चुनकर लिखिए –
• अक्षर — नूतन
• जग — जलता
• गगन — ऊँचा
• प्रवाह — शाश्वत
• रूप — सलोना
• सत्य — चिरंतन
इतने ऊँचे उठो कविता के शब्दार्थ
• सिंचित – सींचना
• वृष्टि – वर्षा
• द्वेष – मन-मुटाव
• तूलिका – कूची, ब्रश
• जीर्ण-शीर्ण – फटा-पुराना
• द्योतक – प्रतीक, सूचक
• चिरंतन – सदा रहने वाला
• शाश्वत – जो सदा रहे|